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श्रेणिक विम्बसार
क्रमश राजकुमार सिद्धार्थ बडा हुआ । वह बचपन से ही दयालु प्रकृति का था । वह प्राय अपने चचेरे भाई देवदत्त के साथ खेला करता था । देवदत्त शिकार का प्रेमी ना, किन्तु सिद्धार्थ किसी भी जीव को दुख देने का विरोधी था ।
एक बार सिद्धार्थ और देवदत्त अपने महल की छत पर खडे थे कि ऊपर कुछ कबूतर उडे । देवदत्त ने बाण मारकर एक कबूतर को घायल करके गिरा दिया । कबूतर के गिरते ही देवदत्त और सिद्धार्थ दोनो उसे लेने को दौड़े । किंतु देवदत्त के पहुचने से पहले सिद्धार्थ उसको उठा चुका था । तब देवदत्त बोला
“सिद्धार्थ उसे छोड़ दो वह मेरा शिकार है ।"
"नही ! मै उसे नही छोडें गा । मैने उसको शरण दी है ।"
देवदत्त सिद्धार्थ के स्वभाव से परिचित था । अतएव उसको कबूतर के विषय में उससे झगड़ा करने का साहस नही पडा । सिद्धार्थ ने उस कबूतर की चिकित्सा की और अच्छा होने पर उसे उडा दिया ।
कुमार की आयु आठ वर्ष की होने पर उन्हें शिक्षा के लिये विश्वामित्र को सौपा गया । उन्होने कुमार को वर्णं तथा लिपि सिखला कर क्रमश: कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छद, ज्योतिष तथा वेदो की शिक्षा दी । पच्चीस वर्ष की आयु तक उन्होने सभी विद्याए पढ ली ।
राजकुमार सिद्धार्थ का ऊँचा माथा, चौडा सीना, लम्बी भुजाए और बडबडे कान उनको महापुरुष प्रकट कर रहे थे । वह छोटेपन से ही एकातप्रिय, परम दयालु तथा दूसरे के दुखो से दुखी हो जाने वाले थे । अपने आमोदभवन और क्रीडा के उद्यान में भी वह प्राय एकात मे बैठ जाया करते थे । उनकी इस प्रवृत्ति से घबरा कर उनके पिता ने उनका यशोधरा से विवाह किया था । उनकी पत्नी यशोधरा उनके मामा दण्डपाणि की पुत्री थी, जो देवदह के राजा थे । गौतम के अट्ठाईसवें वर्ष में राजकुमारी यशोधरा ।
जन्म दिया । इस बच्चे का नाम राहुल रखा गया । अब का समय अधिक आनन्दपूर्वक व्यतीत होने लगा ।
एक पुत्र रत्न को राजकुमार सिद्धार्थ