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गौतम सिद्धार्थ तथा बिम्बसार राहुल वह परा विद्या के साथ-साथ अपरा विद्या का भी विद्वान् है ।
यज्ञदत्त-तो क्या फिर भी उसे माता-पिता ने घर से निकाल दिया ?
भद्रक-उसको निकालना तो क्या, वह तो अब भी उनके दर्शन के लिये लालायित है।
धनदत्त-तो फिर उसने घर छोडा क्यो ?
भद्रक-इसलिये कि वह भोग की अपेक्षा त्याग को अच्छा समझता है। वह जानता है कि भोगो से नरक तथा त्याग से स्वर्ग मिलता है।
धनदत्त-तो क्या उसने स्वर्ग की इच्छा से घर छोटा
भद्रक--स्वर्ग की इच्छा से नहीं, वरन् मोक्ष की इच्छा में। वह मनुष्य को जन्म, रोग, वृद्धावस्था तथा मरण के दुःखो मे छुड़ाने का मार्ग खोजता फिर रहा है। वह जानता है कि इस मार्ग का अन्वेषण घर में रह कर नहीं किया जा सकता । उसका पता त्यागी जीवन व्यतीत करके ही लगाया जा सकता है ।
धनदत्त-तो क्या अभी तक उसको अपने उद्देश्य मे सफलता नहीं मिली?
भद्रक नभी तो वह उपदेश नहीं देता । सफलता मिलने पर तो वह मव किसी को उपदेश देकर समार के उन दु खो से छटने का मार्ग वतावेगा।
धनदत्त-अच्छा । अव मै समझा कि राजगृह के घर-घर मे इस निरीह अकिंचन युवक की चर्चा आज क्यो की जा रही है।
यह लोग इस प्रकार वार्तालाप कर ही रहे थे कि एक तीस पैतीस वर्ष का मैले वस्त्रो का साधु नगर के प्रधान द्वार से अन्दर घुसता हुआ दिखलाई दिया। उसके नेत्र वडे-बडे, माथा ऊँचा, सीना चौडा तथा कधे ऊँचे थे । वह बहुत कम वोलता और पाओ-प्यादे ही चलता था। उसको देखकर भद्रक अपने साथियो से बोला
"वह देखो, गौतम सिद्धार्थ इधर से ही आ रहे है । सम्भवत वह समाट् श्रेणिक विम्बसार से मिलने जा रहे है । चले हम भी उनके पीछे चले।" ।
गौतम सिद्धार्थ के पीछे-पीछे पर्याप्त जन समूह था। वह लोग बीच, मे 'गौतम सिद्धार्थ की जय' 'कपिलवस्तु के राजकुमार की जय' आदि बोल-बोलकर उनका अभिनदन करते जाते थे। किनु सिद्धार्थ का ध्यान उनकी ओर नहीं था ! वह
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