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अभयकुमार की न्याय बुद्धि
सम्राट् — क्या इन तीनो व्यक्तियों के विषय में इनका पिछला वर्णन भी भेजा गया है ।
व्यावहारिक भेजा गया है श्रीमान् 1
सम्राट् - अच्छा, उसे पढकर सुना ।
व्यावहारिक — जैसी श्रीमान् की आज्ञा ! मै इसे पढकर सुनाता हू । "इस स्त्री भद्रा का पति बलभद्र अयोध्या निवासी एक सच्चरित्र किसान है । इस स्त्री का अयोध्या के एक धनिक व्यक्ति वसत से गुप्त सम्बन्ध हो गया । बाद मे एक त्यागी महात्मा के उपदेश से इसने शीलव्रत ले लिया और वसन्त का साथ छोड दिया । वसन्त ने उस पर बहुत डोरे डाले, किन्तु यह उसके वश मे न आई। बाद मे वसन्त को इस स्त्री के लिये पागल दशा मे गलियो मे घूमते हुए देखा गया । कुछ समय पश्चात् वसन्त अयोध्या से गायब हो गया और बलभद्र का आकार बनाकर एक अन्य व्यक्ति असली बलभद्र को घर से निकालने लगा । इसके पश्चात् यह पता लगाना असम्भव हो गया कि असली बलभद्र कौन है ।"
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सम्राट् - यह तो बडा भयानक वर्णन है । यह अभियोग तो पहले से भी अधिक पेचीदा है |
फिर उन्होने अभयकुमार की ओर देखकर उनसे पूछा
“क्यो कुमार । तुम इस अधियोग का निर्णय कर सकोगे ?"
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कुमार - सम्भवत कर तो सकूँगा ।
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सम्राट् - अच्छा देवी । तुम्हारे अभियोग का निर्णय युवराज करेगे । - दोनो बलभद्रो का एक-सा रूपरंग देखकर पहले तो अभयकुमार चकरा गए । उन्होने दोनो व्यक्तियो के शरीरो की भद्रा की सहायता से अत्यन्त सूक्ष्मतापूर्वक जाच की, किन्तु उनको उन में लेशमात्र भी अन्तर न मिला । अन्त में सोचते-सोचते उनके हृदय में एक विचार आया । उहोने दोनो बलभद्रो को एक सीखचेदार कोठरी में बन्द कर दिया । फिर उन्होने एक तू बी अपने सामने रखकर दोनो बलभद्रो से कहा
"सुनो भाई बलभद्रो । तुम दोनो मे से कोठे के सीखचो में से निकल कर
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