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अभयकुमार की न्याय-बुद्धि तब सम्राट ने व्यावहारिक से कहा
"अच्छा व्यावहारिक, इस अभियोग को युवराज के सम्मुख उपस्थित करो। इसका वही निर्णय करेंगे।"
व्यावहारिक के उक्त दोनो सेठानियो को अभयकुमार के सामन उपस्थित करने पर अभयकुमार ने उनमें से एक से पूछा
अभयकुमार-वसुमित्रा देवी | उस परमपिता परमात्मा की साक्षीपूर्वक अपना वक्तव्य दो।
वसुमित्रा-मै उस परमपिता परमात्मा की शपथपूर्वक यह कहती है कि यह बालक सुमित्र मेरी कोख से उत्पन्न हुआ है। मै ही इसकी माता हूं, वमुदत्ता इसकी माता नही ।
अभयकुमार-अब वसुदत्ता देवी तुमको क्या कहना है ?
वसुदत्ता-युवराज | मै भी उस परमपिता परमात्मा की शपथपूर्वक यह कहती है कि यह बालक सुमित्र मेरो कोख से उत्पन्न हुआ है और मै ही इसकी माता हू, वसुमित्रा नही । __ अभयकुमार-तो तुम लोग सच्ची वान नही बतलायोगी? यह तो सभव नही है कि बालक दोनो की कोम्ब से उत्पन्न हुआ हो। किन्तु इस पर दावा दोनो करती है, क्योकि जो बच्चे की माता सिद्ध होगी सेठ सुभद्रदत्त की अपार सम्पत्ति पर भी उमी का अधिकार होगा; किन्तु तथ्य का किसी प्रकार पता नही लगता । अस्तु मै तो बच्चे को आधा-आधा काटकर दोनो को दिये देता है।
यह कहकर अभयकुमार ने बच्चे को लेकर उसके पेट पर नगी तलवार रख दी । वसुमित्रा यह देखकर धाडे मार-मार कर रोने लगी। उसने अभयकुमार की तलवार पकड कर उससे कहा___ "युवराज | बच्चे के दो टुकड़े मत करो। इसे आप वसुदत्ता को ही दे दे। मै इस पर से अपने दावे को वापिस लेती हू और वमुदत्ता के पास ही इसका मुख देख लिया करूगी।” यह कह कर वसुमित्रा अभयकुमार के पावों में पड़ गई, किन्तु वसुदत्ता
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