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श्रेणिक बिम्बसार
तूलिका रखते है उस का चित्र तत्काल चित्रपट पर बन जाता है। हम इनके साथ प्रतिद्वन्दिता करने में असमर्थ है।"
इस पर राजा चेटक बोले--
"अयोध्यानिवासी चित्रकार | हम तुमको वैशाली के समस्त चित्रकारो को प्रतिद्वद्विता मै पराजित करने पर बधाई देते है। यदि तुम्हारी इच्छा हो तो हम तुमको वैशाली में निवास की पूर्ण सुविधा देगे । हमारी इच्छा है कि तुम हमारी सन्तान को चित्रकला की शिक्षा दो।"
इस पर भरत ने उत्तर दिया
"मैं इसको अपना सौभाग्य समझू गा देव । अभी मैने कही अपना घर बनायां भी नही है । यदि महाराज की ऐसी कृपा रही तो मै वैशाली को ही अपनी जन्म-भूमि मानकर यहाँ की नागरिकता प्राप्त करने का यत्न करूगा।"
राजा-हम तुमको अपने राजमहल का वह भवन रहन के लिये देते हैं, जो अभी तक हमारे अतिथि-निवास का काम देता रहा है। तुम को वहा सभी प्रकार की आवश्यक वस्तुए तैयार मिलेगी।
भरत-मै अनुग्रहीत हुआ देव । मै अभी उस भवन मे जा रहा है।
तभी दोपहर के विश्राम का घटा बजा और राजा चेटक सहित अष्ट कुल के सभी नौ सौ निन्यानवे राजा तथा अन्य सभासद अपने-अपने घर चले गए। राजा चेटक भरत को अपने साथ लेकर अपने घर के समीप अतिथिशाला मे ठहरा आए । यहा उन्होने उसके आतिथ्य की सम्पूर्ण व्यवस्था करदी ।
राजा चेटक की पटरानी का नाम सुभद्रा था । उससे राजा चेटक की सात कन्याए उत्पन्न हुई थी
१ त्रिशला देवी का विवाह वैशाली के उपनगर कुण्ड ग्राम कुण्डपुर अथवा कुण्डल पुर के निवासी नाथवशी अथवा ज्ञातृकवशीय राजा सिद्धार्थ के साथ हुआ था । त्रिशला देवी को प्रियकारिणी तथा मनोहरा भी कहा जाता था। .
२ द्वितीय कन्या मृगावती का विवाह वत्सदेश के राजा शतानीक के साथ कौशाम्बी मे हुआ था। शतानीक को सार अथवा महाराजनाथ भी कहते थे। इन दोनो का पुत्र उदयन अपने पिता के बाद बड़ा प्रतापी राजा हुआ ।