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महासती चन्दनवाला
तथा जजीरो से बंधी देखकर किंकर्तव्यविमूढ हो गए कि पहले क्या करें। पहिले उनको उसके भोजन की चिंता हुई। वह घर में दौडे गए, किंतु घर में उस समय भोजन कुछ भी तैयार नही था। केवल थोडी-सी कुलथी उबली हुई एक सूप मे रखी थी। सेठ उस सूत्र को ही लेकर चन्दनवाला के पास रख आए और हथकडियो और वेडियो को काटने का उपाय करने फिर चले गए।
चन्दनवाला अपने भौंरे के सम्मुख हाथ-पैर बंधी हुई रो रही थी। यद्यपि उसके मुख से कौमार्य दमक रहा था, किन्तु रोते-रोते उसके नेत्र सूज गए थे । उसका सिर मुंडा हुआ था। वस्त्र के नाम पर वह केवल एक कच्छा ही पहिने हुई थी। इस समय दोपहर ढल रहा था और उसे निराहार रहते तीन दिन बीत गए थे, फिर भी वह उन उबले हुए कुलथी के दानों को किसी सत्पात्र को प्राहार-दान दिये बिना खाना न चाहती थी। वह एक पैर कमरे के अन्दर तथा दूसरा पैर बाहर रखे किसी अतिथि के आने की प्रतीक्षा कर रही थी कि भगवान् महावीर उधर से पधारे। वह उनको देखकर प्रसन्न हो गई। उसने उनसे कहा
"भगवन् । आहार पानी शुद्ध है । पधारिये, पधारिये।"
जैसा कि पीछे पता लगा, भगवान् का अभिग्रह यह था कि किसी ऐसी कुमारी राजकन्या के हाथ से सूप में रखी उबली हुई कुलथी का आहार ही लेगे, जिसके हाथ-पैर जजीर से बँधे हुए हो, जिसका सिर मुडा हुआ हो, वस्त्र के नाम पर जो केवल एक कच्छा ही पहिने हुए हो, उस समय दोपहर ढल चुके और उसे निराहार रहते तीन दिन बीत गए हो। उसका एक पैर कमरे के अन्दर तथा दूसरा पैर कमरे के बाहिर हो। वह पहले हँसे ओर पीछे रो पडे ।.
भगवान् महावीर स्वामी अपने अभिग्रह की लगभग सभी बाते वहाँ मिलती देख कर रुके, किन्तु उनको वहा फिर भी एक बात की त्रुटि दिखलाई पडी । भगवान् चाहते थे कि आहार देने वाली राजकन्या पहले प्रसन्नवदन हो, किन्तु बाद मे रो पडे । वह चन्दनबाला को प्रसन्न देखकर आगे को बढ गए । किन्तु चन्दनबाला अपनी आशा पूरी न होती देखकर फूट-फूट कर रोने लगी । उसको रोती देवकर भगवान् ने वापिस आकर अपने दोनो हाथ उसके