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श्रमण गौतम
को पूर्ण करने के लिये एक ओर को एक विशाल दीवार बना कर राजगृह की किलेबदी को सर्वथा अजेय बना दिया गया था । वास्तव में राजगृह का निर्माण सम्राट् श्रेणिक बिम्बसार की रणविद्यापटुता का एक नमूनी था। इस बार गर्म तथा ठडे पानी के बाईसो प्राकृतिक कुण्ड भी राजधानी के अन्दर ही आ गय थे। इससे राजगह जल के विषय मे इतना अधिक आत्मनिर्भर हो गया था कि शत्रु द्वारा नगर के घेर लिये जाने पर उसे कभी भी जल का अभाव नहीं हो सकता था। गौतम तिद्धार्थ लिच्छावियो की राजधानी वैशाली से चल कर राजगृह चले गये।