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श्रेणिक बिम्बसार
राज्य आपको देने को तैयार हू । आप यहा रहकर चाहे सब सुखो का भोग करे, चाहे घर मे रहते हुए ही साधना करते जावे, किन्तु आप कही न जावे ।
गौतम - सम्राट् । मुझे राज्य जैसे क्षणभंगुर पदार्थ की लालसा होती तो मैं अपने पिता शुद्धोदन का राज्य ही क्यो छोडता । मुझे तो जब तक पूर्णं बोध की प्राप्ति न हो जावेगी, मैं इसी प्रकार प्रयत्न करता रहूगा ।"
गौतम के यह शब्द सुनकर सम्राट् तनिक लज्जित हो गए । उनको गौतम के चरित्र पर अत्यन्त श्रद्धा हुई। उन्होने गौतम से फिर कहा-
"अच्छा, कुमार । मै आपको इस मार्ग का परित्याग करने को नही कहता किन्तु मेरा एक अनुरोध आप अवश्य स्वीकार करे ।
गौतम
?
- वह क्या सम्राट्
सम्राट - यह कि बुद्धत्व प्राप्त करने पर आप राजगृह अवश्य आने की कृपा करे और इस नगर के निवासियो को भी अपने अनुभव का लाभ पहुँचने दे ।
गौतम - हा, आपके इस अनुरोध को में स्वीकार करता हू ।