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बौद्ध मत की शरण में गौतम सिद्धार्थ समाट् बिम्बसार से वार्तालाप करके राजगृह के प्रसिद्ध आचार्य रामपुत्र रुद्रक के यहा आए । वह एक ससारप्रसिद्ध विद्वान् थे और अपने यहा ७६६ ब्रह्मचारियों को रखकर उन्हे निक्षा देते थे। गौतम को अपने हाथो मे समिधाए लेकर आते देख कर आचार्य ने पूछा
"क्या पढना चाहते हो?" "अध्यात्म विद्या" "कहा के निवासी हो?" 'न कपिलवस्तु का निवामी था, किन्तु अब मैं गृहत्यागी हूँ।' "ओह ! क्या तुम राजा शुद्धोदन के पुत्र गौतम सिद्धार्थ हो?" "ऐना ही है गुरुदेव ।”
इन प्रकार गौम राजगृह मे जाचार्य रुद्रक के गुरुकुल में रह कर अचयन करने लगे। कुछ समय बाद उनके पास जमान्म-शास्त्र का अध्ययन मनान्त करके गोतम बोले___आचार्यवर | मैंने आपकी गिक्षा द्वारा श्रद्धा, वीर्य, समाधि ओर स्मृति को प्राप्त कर लिया है, किन्तु केवल इन्ही से निर्वाण की प्राप्ति दुर्लभ ह। अतएव मै प्रज्ञा का भी साक्षात्कार करना चाहता हूँ । कृपया मुझे उसकी शिक्षा दीजिये।"
रुद्रक-यह विद्या मेरे पास भी नहीं है कुमार ! इसके लिये तुम किसी और गुरु को खोजो। सिद्धार्थ--जैसी गुरुदेव की आज्ञा ।
यह कहकर सिद्धार्थ वहा से चल दिये। उनके साथ उस आश्रम के पाँच अन्य ब्रह्मचारी भी प्रज्ञा-लाभ के लिये गौतम के साथ चले । बाद मे इन पाँचो
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