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श्रेणिक बिम्बसार
कुमार के सायंकाल तक गिरिव्रज पहुंचने का समाचार नगर में पहुंच ही चुका था । अत नगरवासियो की एक बडी भारी भीड़ उनके दर्शन करने को राजमार्ग पर एकत्रित थी। नगर की स्त्रिया तो मार्ग के प्रत्येक मकान की छत पर जमा हो गई थीं। उनके आगे-आगे बाजा बजता जा रहा था, जिससे उनके मार्ग मे भीड बराबर बढती ही जाती थी। उत्सुक स्त्रियो मे तो उनको देखने की होड़ सी लग गई । कोई अपना रसोई घर छोडकर अपने छज्जे मे भागी तो कोई अपने बालक की एक आँख में काजल लगाकर दूसरी आँख मे बिना काजल दिये ही बालक को उठाकर भागी। कोई स्त्री अपने ही काजल लगा रही थी कि बाजो के शब्द से वह काजल की सलाई को जल्दी मे आख के स्थान पर, गाल पर ही लगाकर भागती हुई अपने छज्जे पर आई। कोई स्त्री अपने पैर मे लाल मेहदी लगा रही थी। वह मेहदी से अपने घर के सारे फर्श को खराब करती हुई अपने बालाखाने मे जा पहुंची। इस प्रकार स्त्रियो के ठट्र के ठट्ट छज्जो, बालाखानो, बटारियों तथा चौखण्डो पर जमा हो गए और वह बडी उत्सुकता से कुमार को देखने लगी। कोई स्त्री, उनके सुन्दर मुख को, कोई उनकी भुजाओ को, कोई उनके चौड़े वक्षस्थल को तो कोई उनके चरणो को देख रही थीं । बालक, युवा तथा वृद्ध सभी कुमार के दर्शन करने को मार्ग में अत्यन्त उत्साह से जमा हो गए थे।
जनता की भीड के साथ-साथ कुमार की सवारी भी नगर में आगे-आगे बढती जाती थी। बाजो के पीछे-पीछे बंदीजन कुमार को विरुदावली का बखान कर रहे थे। मार्ग मे स्थान-स्थान पर पुरवासी राजकुमार की प्रशसा कर रहे थे । इस प्रकार राजमार्ग से जाते हुए कुमार अभय राजसभा के पास जा पहुंचे। उन्होने रथ से उतर कर अपने नाना सेठ इन्द्रदत्त के साथ राजसभा मे प्रवेश किया। आज कुमार के आगमन के कारण दिन छिप जाने पर भी राजसभा पूरी तरह भरी हुई थी।
राजकुमार ने सभा में सम्राट को रत्नजटित सिंहासन पर विराजमान देखकर अत्यत विनयपूर्वक उनको नमस्कार करके उनके चरण छए । महाराज ने उनको खेचकर अपनी गोद में बैठा लिया। स्वागत सत्कार हो चुकने पर