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युवराज-पद मगध की राजसभा को आज विशेष रूप से सजाया गया है। प्रत्येक खभे तथा प्रत्यक दालान मे आज राजपताका आदि लगाकर सजाया गया है । फर्श पर पहिले से अच्छे फर्श बिछाकर आसनो की संख्या पर्याप्त बढा दी गई है। फर्श को भी काफी दूर तक बढा दिया गया है, जिससे उसके ऊपर अधिक व्यक्ति बैठ सके । आज जनता ने प्रात काल से ही राजसभा मे आना आरम्भ कर दिया। नगर में इस बात का समाचार था कि आज राजसभा मे कोई महत्त्वपूर्ण राज-घोषणा की जानेवाली है । अतएव नगरनिवासी अत्यन्त उत्साहपूर्वक राजसभा में आ रहे थे। दस बजते-बजते राजसभा का सारा आँगन ठसाठस भर गया। किन्तु आने-जाने वालो का तांता अब भी लगा हुआ था। दस बजते-बनते राज्याधिकारियो ने भी आना आरम्भ किया । क्रमश सभामण्डप का अन्दर का भाग भी पूर्णतया भर गया। सभी राज्याधिकारियो के आ जाने पर प्रधान सेनापति भद्रसेन तश्या महामात्य वर्षकार भी आकर अपने अपने आसनो पर आ बैठे। इसी समय राजमहल की ओर के द्वार से राजकुमार अभय को साथ लिये सम्राट् श्रेणिक बिम्बसार आते हुए दिखलाई दिये । उनको देखते ही जनता ने उच्च स्वर से कहा
"सम्राट श्रेणिक की जय" "राजकुमार अभय की जय"
सम्राट् तथा राजकुमार के अपने-अपने आसन पर बैठ जाने पर महामात्य वर्षकार उठकर खडे हुए । वह कहने लगे
“सम्राट् ! राज्याधिकारी ! पौर जानपद तथा उपस्थित महानुभाव सुने । मुझको अत्यन्त प्रसन्नता है कि आज मुझे राजकुमार अभय का आप लोगो की ओर से स्वागत करने का अवसर प्राप्त हुआ है। उनमे विलक्षण चातुर्य, अतुल पराक्रम तथा अलौकिक साहस है । सात वर्ष की आयु मे इतन लोकोत्तर गुणो का अस्तित्व बिना पिछले जन्म के पुण्य के सभव नहीं है। नन्दिग्राम के ब्राह्मणो की रक्षा करने मे इन्होने जिस चातुर्य का परिचय दिया है, उससे तो