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श्रेणिक बिम्बसार कर इस प्रकार देनी आरम्भ की कि वह उनको बालू मे राजपुरुष उनको बालू मे से उठा उठा कर तथा फूक से छुड़ा कर खाने लगे । उनको ऐसा करते देखकर अभयकुमार बोले
"आप लोग इन फलो को खूब फूक मार-मार कर तथा ठंडा करके खावे । कही ऐसा न हो कि इनकी आच से आपकी दाढी-मूँछे जल जावे ।" इस पर उन राजपुरुषो ने लज्जित होकर कहा
"अच्छा, अब आप हमे ठडे फल दे ।"
तब अभयकुमार ने उन्हे कच्ची - कच्ची जामुने देनी आरम्भ की।
अभयकुमार की वाक्चातुरी, तेजस्विता, मुख का सौन्दर्य तथा अन्य बालको से असाधारण उनके बहुमूल्य वस्त्रो को देखकर राजपुरुष यह तुरत समझ गये कि यह कोई असाधारण बुद्धि वाला राजकुमार है । उनको यह समझते भी देर न लगी कि यह राजकुमार नन्दिग्राम का नही है । उन्होने मन मे यह अच्छी तरह अनुमान कर लिया कि सम्राट् के कठिन प्रश्नो का उत्तर इसी राजकुमार ने दिया था, न कि ब्राह्मणो हे । इस प्रकार मन ही मन तर्क करके वह वहा से आगे बढ कर ग्राम में पहुँचे। ग्राम मे जाकर उन्होने पूछगछ करके यह पता लगा लिया कि इन दिनो नन्दिग्राम मे राजा श्रेणिक बिम्बसार के पुत्र, उनकी रानी नन्दिश्री तथा श्वशुर सेठ इद्रदत्त अपने सेवको सहित ठहरे हुए है । अतएव वह लज्जित तथा आनंदित होकर वहाँ से गिरिव्रज लौट चले । वहा आने पर उन्होने सम्राट् को नमस्कार कर कुमार अभय की जो-जो चेष्टा देखी थी सब कह सुनाई। उन्होने महाराजसे कहा
" महाराज उस कुमार को देखकर हम प्रथम दृष्टि मे ही समझ गये थे कि यह अमावारण बालक नन्दिग्राम निवासी नही हो सकता । वह सब लड़को से अधिक तेजस्वी, प्रतापी तथा राजलक्षणो से मडित था । उपस्थित बालकों में से उसके जैसा तेज किसी के मुख पर नही था । बाद मे लोगो से बातचीत करने पर तो हमको उसका यथार्थ परिचय भी मिल गया । अब आप जैसा उचित समझे करे ।"
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फेक दिया करते थे ।
उनका बालू छडा -
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