________________
१६
राज्यारोहण
गिरिव्रज की राज्यक्राति के पूर्णतया सफल होने पर श्रेणिक बिम्बसार का राज्याभिषेक उसी दिन करने का निश्चय किया गया। इस कार्य के लिये राज्यमहल तथा राज्यसभा सभी को आनन-फानन में सजाया गया । उसमे सभी योग्य आसनो के लग जाने पर मगध के गिरिव्रज स्थित अनुगत राजा, क्षत्रप, मण्डलिक, गणपति, निगम, श्रेष्ठी, गृहपति, सामन्त, जानपद और पौर सभी एकत्रित हो गए । राज्यसभा का विशाल प्रागण ठसाठस भर गया और वहा तिल धरने को भी स्थान शेष न रहा ।
अचानक रनवास की ओर का फाटक खुला और राजकुमार श्रेणिकबिम्बसार राज्यसभा के योग्य भडकीले वस्त्र पहिने वहा से आते हुए दिखलाई दिये । उनके दाहिनी ओर महामात्य कल्पक, बाई ओर- प्रधान सेनापति भद्रसेन तथा पीछे ब्रह्मचारी वर्षकार, शालिभद्र तथा गुणभद्र चल रहे थे । राजकुमार के आते ही जनता ने उच्चस्वर से
" राजकुमार श्रेणिक बिम्बसार की जय"
बोल कर सारे सभा भवन को अपने शब्द से गुजा दिया । इन लोगो के बैठ जाने पर महामात्य कल्पक ने खड़े होकर कहा
"राज - सभासद, राज्याधिकारी, ब्राह्मण, पौर तथा जानपद मेरे निवेदन ध्यान पूर्वक सुने । यह राजकुमार श्रेणिक बिम्बसार आज हमारे सौभाग्यवश यहा उपस्थित है । चिलाती के अत्याचारो से जब सारा राज्य त्राहि-त्राहि कर रहा था तब आपके प्रतिनिधियो ने राजकुमार की सेवा में उपस्थित होकर प्रार्थना की कि वे चिलाती से मगध के राज्य-सिंहासन को छीन ले । आप जानते है कि राज्य - सिंहासन पर वास्तव मे इनका ही अधिकार होना चाहिये था। महाराज भट्टिय उपश्रेणिक ने प्रथम तो इनके
अधिकार को मान
१०८