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श्रेणिक बिम्बसार
यह तिल है इनके बराबर इनका तेल शीघ्र ही गिरिव्रज पहुँचा दो।"
महाराज की आज्ञानसार दूत नन्दिग्राम को वल दिया। उसने वे तिल ब्राह्मणो. को देकर उनसे कहा कि जितने ये तिल है महाराज ने उतना ही तेल मॅगवाया है।
दूत का यह वचन सुनकर ब्राह्मण बडे घबराए। वह सीधे कुमार अभय के पाग गए और उनसे कहने लगे
"महोदय | महाराज ने ये थोडे से तिल भेजे है और इनके बराबर इनका तेल मागा है । अब हम क्या करे ? यह बात तो बडी कठिन है। तिलो के बराबर तेल कैसे भेजा जा सकता है । जान पटता है कि हम अबकी बार राजदण्ड से नही बच सकेगे।"
ब्राह्मणो को इस प्रकार हताश देखकर कुमार ने उनको फिर सात्वना देकर समझापा । उन्होने एक दर्पण मगवाकर उस पर तिलो को पूर कर ब्राह्मणो को आज्ञा दी कि जाम्रो इनका तेल निकलवा लाम्रो। जिस समय कुमार की आज्ञानसार ब्राह्मण तेल निकलवा कर लाए तो कुमार ने उस तेल को तिलो के बराबर ही दर्पण पर पूर दिया और उसको उसी दशा में समा के पास किसी मनुष्य द्वारा भिजवा दिया। ___ इस प्रकार तिलो के बराबर तेल देखकर महाराज चकित रह गए। वह नन्दिगान के ब्राह्मणों की बुद्धिमत्ता की प्रशसा करने लगे। अब उनके मन में प्रतिहिमा की अपेक्षा परीक्षा का कौतूहल अधिक हो गया। उन्होने फिर एक सेवक को बुलाया और उससे कहा--
"तुम अभी नन्दिग्राम जाओ और वहा के ब्राह्मणो से कहो कि महाराज ने भोजन के योग्य दूध मगाया है। उनसे कहना कि वह दूध गाय, भैस आदि चार थन वाला का न हो और न बकरी आदि दो थन दालो का हो । नारियल आदि फलो का भी न हो । इनके अतिरिक्त अन्य प्रकार का हो । मिष्ट हो, उत्तम हो और बहुत सा हो।" । ___महाराज की आज्ञानुसार दूत फिर नन्दिग्राम गया। महाराज ने जेसा दूध लाने की आज्ञा दी थी उसने वह आज्ञा नन्दिग्राम के ब्राह्मणो को जाकर सुना १२४