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प्रणय परीक्षा नन्दिश्री की दासी का नाम लम्बनखी था । वास्तव में उसे अपने नाखून बढाकर रखने का व्यसन था। इसीसे उसे सब लम्बनखी कहा करते थे। मन्दिश्री ने उसको अपने पास बुलाकर कहा
"लम्बनखी । तू जरा अपने नाखून मे तेल भर कर गाव के बाहिर नदी किनारे चली जा । वहा आम के नीचे एक नवयुवक बैठा हुआ है। तू उससे कहना कि आपको नन्दिश्री ने बुलाया है और स्नान करने के लिये यह तेल भेजा है । पाते समय उसको तू घर का पता न बतलाकर केवल कान दिखला कर चली आना।"
लम्बनखी ने नन्दिश्री के कहे अनुसार ही सारा कार्य किया। प्रथम उसने अपने हाथो के दसो नखो मे तेल भरा । फिर उनको ऊपर किये हुए वह नदी किनारे आम के वृक्ष के नीचे बैठे हुए राजकुमार बिम्बसार के पास आकर बोली___ "राजकुमार | आपको नन्दिश्री ने बुलाया है और स्नान करने के लिये यह तेल भेजा है।"
बिम्बसार-नन्दिश्री क्या उन्ही सेठ इन्द्रदत जी की पुत्री है, जिनके साथ हमारा यहा तक आना हुआ है ।
लम्बनखी-जी हाँ, यही बात है।
इस पर राजकुमार ने वही बैठे २ पैर से भूमि में एक गड्ढा खोद दिया। नदी किनारा होने के कारण उसमे तुरन्त जल भर आया। तब राजकुमार ने लम्बनखी से कहा____ "तू अपने नखो के तेल को इस जड़ मे डाल कर घर जा। मैं भी स्नान कर पीछे से आता हूँ।"