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श्रोणिक बिम्बसार
पास बिछे एक मूढे पर बैठकर उनके साथ बाते करने लगे।
सेठ जी--राजकुमार | यद्यपि आपने अब तक मुझ से अपना परिचय छिपाया, कितु मुझे आज आपका वास्तविक परिचय मिल गया। मुझे यह जान कर अत्यत प्रसन्नता हुई कि आप मगध के निर्वासित राजकुमार बिम्बसार है।
राजकमार--अच्छा, आपको मेरा असली परिचय मिल गया । तब तो हमीप ही यहा से आगे चल देना चाहिये, क्योकि मेरा परिचय आप पर प्रकट हआ हे तो औरो पर भी यहा प्रकट हो जावेगा।
सेठ जी-नही राजकुमार, मुझ से इस परिचय का दूसरे को पता नही चल सकता। आप यहा निश्चिन्त होकर रहे । मै आपके कार्य मे सब प्रकार से महायता दगा । अच्छा, क्या मैं आपसे आपके परिवार के सम्बध में कुछ और प्रश्न कर सकता हूँ?
राजकुमार-हा, अब तो आपके प्रश्नो का उत्तर देने में मुझे कोई आपत्ति नही होनी चाहिये।
सेठ जी-मै यह जानना चाहता हूँ कि क्या आपका अभी तक कोई विवाह भी हुआ है।
राजकमार-मेरा विवाह तो अभी तक नही हुआ फिन्तु देश-निर्वासित होने से पूर्व मेरा वाग्दान कोशल देश की राजकुमारी महाकोशल की कन्या कोशलदेवी के साथ हो चुका है। किन्तु राजाओ तथा राजकुमारो को तो कईकई बार राजनीतिक विवाह भी अपनी इच्छा के विरुद्ध करने पडते है।
सेठ जी-वह किस प्रकार राजकुमार ।
राजकुमार--मान लो किसी देश के साथ हमारा युद्ध होने की सम्भावना है और दोनो पक्ष में से किसी के पास उसकी अपनी कुमारी पुत्री है तो सधि होने पर दूसरे पक्ष को उस राजकुमारी के साथ विवाह करके सधि की प्रायः गारटी देनी होती है।
सेठ जी-तब तो राजकुमारो को अनिवार्य रूप से अनेक विवाह करने पडते है।
राजकुमार-मेरा यही अभिप्राय ।।