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गृह-जामाता पहर भर रात्रि जा चुकी है। राजकुमार बिम्बसार एक पृथक् कमरे में जाकर लट चुके है । नन्दिश्री तथा उसके पिता सेठ इन्द्र दत्त एक दूसरे कमरे मे लेटे हुए है कि सेठ जी ने मौन भग करते हुए कहा
"बेटी | बात तो तेरी ठीक थी। राजकुमार वास्तव में अत्यत तेजस्वी, बुद्धिमान् और पराक्रमी है। जब से मेरा इसका साथ हुआ, मै सदा ही गुप्त रूप से इसका पीछा करके इसकी गतिविधि का समाचार लेता रहा हूँ। परिचय के विषय में जब कभी भी उससे पूछा गया वह सदा ही कुछ न कुछ बहाना कर टालता रहा है। किन्तु आज पन्द्रह दिन तक प्रयत्न करने के बाद मै इसका यथार्थ परिचय जान पाया हूँ। यह महातेजस्वी व्यक्ति मगध का राजकुमार बिम्बसार है।
नन्दिश्री-अच्छा पिता जी । यह वही तेजस्वी राजकुमार है, जिसकी वीरता तथा बुद्धिमत्ता की कहानिया देश-देशान्तरो तक फैली हुई है ।
सेठ जी-हा बेटी, यह वही है। यह हमारे अत्यधिक भाग्य है जो यह आजकल हमारे यहां ठहरा हुआ है।
नन्दिश्री–किंतु पिता जी, आपने इसका परिचय किस प्रकार पाया?
सेठ जी-जिस दिन राजकुमार को मै यहा लाया उससे अगले ही दिन तीन-चार अपरिचित व्यक्ति गाव मे आये। किस प्रकार उन्होन बिम्बसार के यहां होने का पता लगाया और किस प्रकार अपने आने की सूचना उन्होने बिम्बसार को दी यह तो एक रहस्य है, किंतु बिम्बसार को मैने नदी तट के आम वन मे उनसे घुलघुल कर बाते करते अचानक देख लिया। तब से मै गुप्त रहता हुआ छाया के समान उसका पीछा करता रहा हूँ। तब से राजकुमार से कुछ लोग हर तीसरे-चौथे दिन मिलने आते है। आज तो मैने बिल्कुल