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श्रेणिक बिम्बसार
बिम्बसार--जब पिता ने देखा कि अब राज्य-परिवर्तन करना ही पड़ेगा तो उन्होने हम पाच सौ भाइयो की राज्य-प्राप्ति के लिये तीन परीक्षाएँ नियत की। यद्यपि मै युवराज था, अतएव राज्य प्राप्ति के लिये किसी और परीक्षा की आवश्यकता नही थी, फिर भी मैने उन परीक्षाओ मे गम्भीरता से भाग लिया। उन तीनो ही परीक्षाओ मे मै सर्वप्रथम आया ।
नन्दिश्री-वह परीक्षाएँ क्या थी भगवन् ?
बिम्बसार-प्रथम परीक्षा मे हम सब राजकुमारो को एक बडे भारी दालान मे एक साथ भोजन करने के लिये बिठला कर हम को खीर का भोजन परोसा गया । फिर हमारे ऊपर एक भयकर शिकारी कुत्ता छोडा गया। वह देखना चाहते थे कि ऐसी विषम परिस्थिति मे कौन सा राजकुमार असीम धैर्य का परिचय देकर पेट भर कर भोजन करके उठे।
नन्दिश्री-तो उस कुत्ते को देखकर तो सभी राजकुमारो मे भग्गी पड गई होगी।
बिम्बसार-अजी कुछ-न पूछो। वह दृश्य देखने ही योग्य था। रसोई के प्रधान द्वार से कुत्ता भौ भौ करता हुआ आ रहा था। उधर से तो भागना सभव न था। अतएव जिस राजकुमार को जो मार्ग मिला वह उसी से भाग खडा हुआ । कुछ तो खिडकियो के मार्ग से भागे। उस समय का दृश्य वास्तव मे देखने ही योग्य था। उनके चेहरे पर भय के लक्षण थे । घबराहट के मारे उनके वस्त्र अस्त-व्यस्त हो जाये थे। कई एक के तो खिडकी से कूदने मे चोट भी लग गई।
नन्दिश्री-क्या आप उस समय बिल्कुल नही घबराए ?
बिम्बसार-मै क्यो घबराता। मैने मनुष्य, पक्षी तथा पशुओ सभी के स्वभाव का अध्ययन जो किया है। मैं जानता था कि कुत्ता कितना ही भयकर होने पर भी भोजन पर प्राण देता है और वह निश्चय से अपने मार्ग में पड़नेवाली प्रथम थाली मे मुह मार कर उसकी खीर को खाना आरम्भ कर देगा। मै उनके भागने के दृश्य का आनन्द लेता हुआ बिल्कुल शान्ति से बैठा हुआ भोजन करता रहा । कुत्ते ने आते ही प्रथम थाली की खीर को खाना