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लेकर केरल गए। उन्होने विन्ध्याचल और रेवा नदी को पार कर कुरल नामक पर्वत पर विश्राम किया । जम्बू कुमार ने केरल के युद्ध में प्रत्यत पराक्रम दिखला कर राजा रत्लचूल की आठ सहस्र सेना को जान से मार दिया। अत में रत्नचूल तथा मृगाक की मित्रता कराकर तथा विलासवती से विवाह करके राजा श्रेणिक बिम्बसार जम्बूकुमार सहित वापिस राजगृह आए।
जम्बूकुमार द्वारा जिन-दीक्षा-जम्बूकुमार भगवान् महावीर स्वामी के पाचवे गणधर सुधर्माचार्य से दीक्षा लेना चाहते थे, किन्तु उनके पिता उनका विवाह करके उनको गृहस्थ के बधन मे बाधना चाहते थे। उधर राजगृह के चार सेठ भी जम्बूकुमार के साथ अपनी पुत्रियो का विवाह करना चाहते थे। उनकी पुत्रियो ने जब सुना कि जम्बूकुमार विवाह न करके दीक्षा लेना चाहते है तो उन्होने अपने-अपने पितामो द्वारा जम्बकुमार से कहलाया कि वह मायकाल के समय उन चारों के साथ विवाह कर ले और उनको रात्रि भर बातचीत करने का अवसर दे । इसके बाद यदि वह चाहे तो प्रात काल होने पर दीक्षा ले ले । जम्बू कुमार ने इस बात को स्वीकार करके सायकाल के समय उन चारो के साथ विवाह कर लिया। उन चारो ने जम्बूकुमार को रात भर समझाया। बह जम्बूकुमार को भोग भोगने के लिये प्रेरित करती थी और जम्बुकुमार उनको ससार की असारता दिखलाते थे।
विद्युच्चर-उन दिनो दक्षिण के पोदनपुर नगर मे विद्युद्राज नामक एक राजा था। उसके पुत्र विद्युत्प्रभ अथवा विद्युच्चर ने चौर्य-शास्त्र का अध्ययन किया। पिता के बहुत समझाने पर भी उसने राज्य-कार्य न कर चोरी का पेशा ही अपनाया। जिस समय जम्बूकुमार तथा उनकी चारो स्त्रियो का वार्तालाप हो रहा था तो वह उनके यहा चोरी करने आया। किन्तु उनकी बातो में उसे ऐसा रस आया कि वह चोरी करना भूल कर उनकी बाते ही सुनने लगा।
प्रातःकाल होने पर जम्बूकुमार तथा उनकी चारो पत्नियों के साथ विद्युच्चर ने भी सुधर्म स्वामी के पास दीक्षा ले ली।
बिम्बसार के समय विमानों का अस्तित्व-जम्बू स्वामी चरित्र तथा अन्य ग्रन्थों का अध्ययन करने पर हमको इस बात का पता लगता है कि उन