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निर्वाण प्राप्त किया । इस प्रकार श्रेणिक बिम्बसार महात्मा बुद्ध तथा भगवान् महावीर के पूर्णतया समकालीन थे ।
बिम्बसार की अपने राज्य के प्रथम अठारह वर्षो मे ही वैशाली के साथ सधि हो गई थी और सभवत इसी बीच मे वह अग देश को भी अपने राज्य मिला चुका था । यह भी सभव है कि उसने अग देश को इसके कुछ समय बाद जीता हो । क्योकि पिता दधिवाहन के मरने के बाद चन्दनबाला वापिस चम्पा नही गई और उसने भगवान् महावीर स्वामी के केवल-ज्ञान होने का समाचार कौशाम्बी में सुन कर वहा से राजगृह आकर उनसे दीक्षा ली थी । गिरिव्रज के स्थान पर राजगृह का निर्माण भी बिम्बसार ने अपने शासन के प्रथम अठारह वर्ष मे ही किया था । इस प्रकार हम देखते है कि बिम्बसार ने अपने शासन के प्रथम अठारह वर्ष मे अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य किये । इससे पता चलता है कि उसको कितनी कम आयु में कार्यदक्षता प्राप्त हो गई थी ।
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सेनापति जम्बूकुमार — यद्यपि बिम्बसार के सेनापति जम्बूकुमार का वर्णन अन्य ग्रन्थो मे नही मिलता, किन्तु जैन आचार्यो ने उनके सबन्ध में अनेक ग्रन्थो की रचना की है । वह राजगृह के सेठ अर्हदास तथा उनकी सेठानी जिनमती के पुत्र । उन्होने युवावस्था के आरम्भ मे ही सम्पूर्ण अस्त्र-शस्त्रों की शिक्षा प्राप्त कर ली थी । इससे राजदरबार मे भी इनकी मान्यता हो गई । कुछ समय पश्चात् राजा श्रेणिक बिम्बसार ने उनको अपना प्रधान सेनापति बनाया ।
बिम्बसार का केरल - राजकुमारी से विवाह इन दिनो दक्षिण के केरल देश में मृगाक नामक एक विद्याधर राजा राज्य करता था । उसकी स्त्री का नाम मालतीलता था । उसके विशालवती नामक एक पुत्री थी, जिसकी मगनी उसने राजा बिम्बसार के साथ कर दी थी । इस कन्या के नाम विलासवती, मजु तथा वासवी भी मिलते | किन्तु हस ( सिहल ) द्वीप के विद्याधर राजा रत्नचूल ने विशालवती को राजा मृगाक से अपने लिये मागा । मृगाक के इनकार करने पर रत्नचूल ने केरल पर आक्रमण कर दिया । मृगाक द्वारा इस समाचार को पाकर राजा बिम्बसार श्रेणिक जम्बूकुमार के सेनापतित्व में एक सेना उसकी सहायता को भेज कर पीछे से आप भी एक भारी सेना
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