________________
मास खाने से उनको प्राव और लोह के दरत प्राकार खूनी पेचिश हो गई। वह उसी दशा मे कुशीनगर को चल दिये। मार्ग में रोग के कारण कई रथल पर विश्राम करते हुए वह हिरण्यवती नदी को पार करके कुशीनगर के समीप एक शालवन मे ठहरे । वहा उनका रोग और गी वठ गया। उस समय सुभद्र नामक एक परिव्राजक भगवान से कुछ प्रश्न पूछने को पाया। प्रानन्द ने भगवान् का' अतिम समय जान उसे प्रश्न , करने से रोका। वित यह बात तथागत के कान मे पड गई और उन्होने उसको अपने पास बुलाकर उसका समाधान किया। इसके पश्चात् उनका ८२ वर्ष की प्राय मे स्वर्गवास हुआ। उन्होने २५ वर्ष तक ब्रह्मचर्य पालन किया, २८ वर्ष की आय मे गृहत्याग किया, सात वर्ष तप करने के बाद उन्हे ३५ वर्ष की आयु मे बोध हम्मा और ४५ वर्ष तक ससार को ज्ञानामृत का पान कराकर उन्होने ईसापूर्व ५२४ मे निर्वाण प्राप्त किया। मल्लराज ने उनका दाह संस्कार कर उनकी अस्थियो पर स्तूप बनवाकर उन पर अधिकार करने की घोपणा की। इस समय मगधराज अजातशत्रु, वैशाली के लिच्छवियो, कपिलवस्तु के शाक्यो, अल्ल कल्प के बूलयो, रामग्राम के कोलियो और पावा के मत्लो ने कुशीनगर के महाराज के पास दूत भेज कर कहलाया कि
"भगवान् क्षत्रिय थे, हम भी क्षत्रिय है। इस नाते उनके शरीर पर हमारा भी अधिकार है।"
मल्लराज के इनकार करने पर सभी राजा अपने दल-बल समेत कुशीनगर पर चढ दौडे । भगवान् का स्वर्गवास द्रोणाचार्य वशोद्भव द्रोण नामक एक ब्राह्मण की कुटी के पास हुआ था। उसने उन पवित्र अस्थियो के आठ भाग करके उनको कुशीनगर, पौवा, वैशाली, कपिलवस्तु, अल्लकल्प, राजगह और वेठदीप वालो मे बाट दिये। बाद में पिप्पलीय वन के मोरी क्षत्रिय भी उसका भाग लेने आए । द्रोणाचार्य ने उनको चिता की भस्म देकर विदा किया। जिस कुम्भ मे अस्थियां रखी थी उसे सब से माग कर उस पर द्रोणाचार्य ने स्वयं स्तूप बनवाया।
भगवान् बुद्ध के जन्म के समय भारत मे वेदो के नाम पर विशाल परिमाण में जीव-हिसा की जाती थी। उस समय भैसो और बकरो की बहुत बडी