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श्रेणिक बिम्बसार
झटके के साथ एकदम दस-बीस कदम पीछे को दूर हट जाता था। उसने इस प्रकार झटको से राजा को बेहद परेशान कर दिया। उनका बदन थकावट के कारण एकदम चूरचूर हो गया और उनमे घोडे की रास सभालने की शक्ति भी न रही । अन्त मे उसने एक काटो से भरे हुए भारी तथा दुर्गम गड्ढे के किनारे पर जाकर महाराज को ऐसा भारी झटका दिया कि वह उसकी पीठ पर से लुढक कर उसी गड्ढे में गिर पडे । घोडा उनको गिरा कर जगल मे अज्ञात दिशा की ओर भाग गया।
गड्ढे में गिरते ही महाराज का सारा शरीर काटो से बिध गया। गिरने के कारण उनको ऐसी भारी चोट लगी कि वह गिरते ही बेहोश हो गए।
महाराज बहुत देर तक उस गड्ढे मे अचेत पडे रहे। जिस समय उनको कुछ हाश हुआ तो उनके शरीर में भारी वेदना हो रही थी। काटो के कारण वह करवट तक लेने में असमर्थ थे। उनके न केवल वस्त्र ही फट गए थे वरन् शरीर भी लहू-लुहान हो गया था। उस समय वह असहाय के समान मन ही मन परमात्मा का स्मरण कर उससे यह प्रार्थना कर रहे थे कि उनका किसी प्रकार इस विपत्ति से उद्धार हो।
तभी अचानक एक जगली उधर आया । वस्त्र के नाम उसके शरीर पर कटिवस्त्र के अतिरिक्त और कुछ भी न था। किन्तु उसके सिर के बाल कुछ विशेष शैली से बधे हुए थे और उनके उपर कुछ पक्षियो के पख लगे हुए थे। उसके गले मे शख तथा कौडियो के हार पडे हुए थे तथा भुजाओ मे सोने के बाजूबन्द थे, जो उसके अञ्जन के समान काले शरीर पर एक विचित्र आभा डाल रहे थे । राजा को उस गड्ढे मे पडा देखकर उसने कहा
"अरे । महाराज यहा और ऐसी असहाय अवस्था मे ।"
यह कहकर वह तुरन्त उस गड्ढे मे उतर गया। यद्यपि वह गड्ढा काटो से पूर्णतया भरा हुआ था, किन्तु उसके नगे पैर इतने कठोर थ कि काटे उनके स्पर्श से ही टूट जाते थे। वह उस गडढे मे इस प्रकार उतर गया, जिस प्रकार कोई मैदान के गड्ढे मे उतर जाता है। गड्ढे मे उतर कर उसने उन सब काटो