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राज्य-संन्यास आज गिरिव्रज मे अपूर्व आनन्द का स्रोत उमड रहा है। सारे नगर को नए सिरे से सजाया गया है। प्रत्येक घर पर बन्दनवारो तथा झडियो के अतिरिक्त नवीन ध्वजाएं लगाई गई है। सडको मे विशेष रूप से छिडकाव किया गया है । उनकी सफाई इतनी सावधानी से की गई है कि एक दाना भी गिर जावे तो उसका सुगमता से पता लगाया जा सकता है । लोगो के झुण्ड के झुण्ड अपनेअपने घरो से निकल-निकल कर राज्य-सभा की ओर जा रहे है। वह आपस मे अनेक प्रकार की बाते भी करते जाते है । उनमे से एक बोला
__ "भाई, इसमे सन्देह नही कि महाराज भट्रिय उपश्रेणिक ने जन्म भर सैकडो विवाह करके भी जो इस समय सन्यास लेकर वन जाने की घोषणा की है उससे उन्होने अपने जीवन के सारे अनाचारो को धो दिया ।"
तब तक दूसरा बोला
"भाई, यह बात तो तुम्हारी ठीक है । किन्तु राजा सन्यास लेकर कितने ही ऊँचे महात्मा बन जावे इन्होने जो निरपराध बिम्बसार को देश-निर्वासन का दण्ड दिया है, इस कलक को वह सात जन्म लेकर भी नही धो सकेगे।"
इस पर तीसरा बोला__ "तो क्या आप समझते है कि बिम्बसार अब लौट कर गिरिव्रज नही आवेगे । यह निश्चय है कि यह बालक चिलाती किसी प्रकार भी राज्य की बागडोर नही सभाल सकेगा। ऐसी अवस्था में हम और तुम ही चाहे कही से "भी बिम्बसार को द ढकर लावेगे।"
तब चौथा बोला
"यह तुमने ठीक कहा । मै भी यही समझता हूँ कि साल दो साल के अन्दर ही गिरिव्रज में बिम्बसार का शासन स्थापित हो जावेगा।"