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श्रणिक बिम्बसार
जनता ने “महाराज उपश्रेणिक की जय", "राजकुमार चिलाती की जय" के . शब्दो से सारी राजसभा को भर दिया।
राजा उपश्रेणिक आकर अपने सिहासन पर बैठ गए। राजकुमार चिलाती उनके पास एक दूसरे उत्तम आसन पर बैठे। सबके बैठ जाने पर महाराज ने इस प्रकार कहना आरम्भ किया .
"सभासदो, पौर जानपदो, राज्याधिकारियो तथा सामत वर्ग ! हमको राज्य करते हुए अब वृद्धावस्था आ गई है। राज्य-सिहासन पर बैठ कर कर्तव्य-भावना के कारण राजा को अनेक ऐसे कार्य करने पडते है, जिनका फल उसके लिये इस जन्म अथवा अगले जन्म मे बुरा हो सकता है । अतएव राजा का कर्तव्य है कि वह पचास वर्ष की आयु के पश्चात् राज्य कार्य से अपना हाथ खीच कर वन मे जाकर वानप्रस्थ आश्रम का सेवन करे । हमने महारानी तिलकवती देवी से विवाह करते समय यह प्रतिज्ञा की थी कि उसके भावी औरस पुत्र को हम अपना उत्तराधिकारी मगध-सम्राट् बनावेगे । अस्तु आज हम आप सबके सामने उसके पुत्र 'राजकुमार चिलाती' का राज्याभिषेक करके उमे मगध-समाट् बनाना चाहते है । आशा है आप सब हमारे इस कार्य का समर्थन करेगे।"
राजा के यह कहते ही जनता ने फिर जोर की आवाज मे “समाट् उपश्रेणिक की जय"
"राजकुमार चिलाती की जय" बोल कर अपनी सहमति प्रकट की।
इसके पश्चात् वेद मन्त्रो से राजकुमार चिलाती का राज्याभिषेक किया जाकर महाराज भट्टिय उपश्रेणिक ने अपने हाथ से उसके सिर पर राज-मुकुट रखा। उस समय फिर जोर से “समा चिलाती की जय" का घोष किया गया। सम्राट् चिलाती के राज्यसिंहासन पर बैठ जाने पर महामात्य कल्पक ने उठकर तलवार हाथ में लेकर कहा__"मैं कल्पक ब्राह्मण इस बात की शपथपूर्वक प्रतिज्ञा करता हूँ कि मै समाट् चिलाती की सदा ही भक्तिपूर्वक सेवा करता हुआ उनकी आज्ञा का पालन करता रहूँगा।" __ महामात्य कल्पक के बाद प्रधान सेनापति भद्रसेन तथा अन्य सभी राज्या