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प्रकार बनाया जा सकता है।
इस समय चलते-चलते दोपहर हो चुका था। बिम्बसार को भूख जोर से सता रही थी। सेठ जी के मुख से भी भूख तथा प्यास के लक्षण स्पष्ट प्रकट हो रहे थे । अतएव राजकुमार ने उनसे कहा
"मामा | जान पडता है कि पाथेय आप भी नही लाए।"
"नही राजकुमार, मै एक गाव में वसूली के लिये गया था। वहा मार्ग के लिये पाथेय कौन बनाकर देता। अब तो घर चल कर ही भोजन मिलेगा।"
"नही मामा, यह सामने नन्दिग्राम है। इसमे राज्य की ओर से सभी परदेसियो को भोजन दिये जाने की व्यवस्था है। चलो, वही जाकर भोजन करेगे।"
"अच्छा चलो, वही चले।
नन्दिग्राम एक अच्छा कस्बा था। उसमे लगभग एक सहस्र घर थे, जिनमें ब्राह्मणो की संख्या अधिक थी। वही वहा के जमीदार भी थे। नन्दिनाथ नामक एक ब्राह्मण गाव का जमीदार था । नन्दिग्राम मे आगन्तुको के रहने तथा ठहरने के लिये एक बड़ी सुन्दर धर्मशाला थी, जिसमे भोजन भी नि शुल्क दिया जाता था। जिस समय राजकुमार बिम्बसार धर्मशाला में सेठ जी के साथ पहुँचे तो वहा अतिथियों को भोजन कराया जा रहा था। उन्होने नन्दिनाथ के पास जाकर उससे वार्तालाप किया।
"महोदय । यहा के मुख्य प्रबन्धक आप ही है ?" "क्यो । कहिये, आपको क्या काम है ?"
"बात यह है कि हम गिरिव्रज से आ रहे है और राज्य-कर्मचारी है। हम यहा भोजन करना चाहते है।"
"किन्तु राज्य-कर्मचारियो को तो हम जल तक भी नही पिलाया करते, फिर भोजन देना तो किस प्रकार सम्भव हो सकता है।"
इस प्रकार टका-सा उत्तर पाकर राजकुमार बिम्बसार तथा सेठ जी दोनों ही वहा से भूखे-प्यासे वापिस चल आए।
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