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राज्य-संन्यास
इस पर पाचवे ने कहा
"अरे भाई, अब तो इस आलोचना-प्रत्यालोचना को जाने दो । अब तो राज-दरबार सामने दिखलाई दे रहा है। यदि कही किसी राज-पुरुष ने हमारी इन बातो को सुन लिया तो लेने के देने पड जावेगे।"
उसके ऐसा कहने पर सब लोग चुपके-चुपके चलने लगे। राजसभा की आज की सजावट तो और भी देखने योग्य थी। सारी राजसभा मे एक से एक उत्तम दरिया तथा कालीन बिछा कर उनके ऊपर गद्दे तकियो को लगाया गया था। राजपुरुषो के लिये कुर्सी के आकार के आसन बिछाए गए थे। महामात्य कल्पक तथा प्रधान सेनापति भद्रसेन के आसन भी आज विशेष रूप से नये दिखलाई दे रहे थे । पुरान राजसिहासन की बगल में एक नया राजसिंहासन रखा हुआ था। वे दोनो आसन सोने-चादी के बने हुए थे। उनमे बीच-बीच मे रत्नो की प्रभा से अपूर्व ज्योति निकल रही थी।
क्रमश. लोगो का आना-जाना आरम्भ हुआ। आज सभी पौर-जानपदो को राजसभा मे आने के लिये निमन्त्रित किया गया था। जनता को भी आज राजसभा मे आने की पूरी छूट दे दी गई थी। अस्तु सबसे प्रथम राजसभा में दर्शको का ही आगमन आरम्भ हुआ। बाद मे पौर तथा जानपद लोग आए । उनके बाद राज्याधिकारियो ने आकर अपने-अपने स्थान पर बैठना आरम्भ किया । नागरिको, पौर-जानपदो तथा राज्याधिकारियो के आने के बाद सेनापति भद्रसेन इस अवसर के योग्य उपयुक्त उत्तम वस्त्र पहिने राजसभा मे आकर अपने आसन पर बैठ गए । उनके बाद महामात्य कल्पक भी आकर अपने आसन पर बैठ गए । राजकुमारो के बैठने के लिये नीचे सभा मे एक ओर पृथक् व्यवस्था की गई थी । इस प्रकार सारी राजसभा के भर जाने पर लोग उत्सुकता से राजा तथा राजकुमार चिलाती के आने की प्रतीक्षा करने लगे। तब तक राजमहल से तुरही के बजने का शब्द आया। इसके साथ ही साथ अनेक राज्याधिकारियो से घिरे हुए महाराज भट्टिय उपश्रेणिक तथा राजकुमार चलाती भडकीले वस्त्र पहिने आते हुए दिखलाई दिये। उनको देखते ही