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भील कन्या से प्रणय •mmmmmmmmmmmmmmmmmmm..wommmmmmmmmmmmmmmmmmmwwwxnmnomm युवक तथा बालक वहा से चले गए। सरदार राजा को लेकर एक मकान के अन्दर 'तिलकवती, तिलकवती' आवाज लगाता हुआ घुस गया । तिलकवती उसका शब्द सुनते ही आगे बढकर आई । वह एक सोलह वर्ष की सुन्दरी बाला थी। उसका रंग चम्पे के पुष्प के समान हल्का पीलापन लिये हुए गौर था। उसका भग हुआ मुख, गोल चेहरा तथा चचल सुन्दर आँखे उसके उच्चवशीय होने का प्रमाण दे रही थी। सौन्दर्य तथा यौवन उसके सारे बदन से फूटे पडते थे । राजा उसके रूप की छटा को देखकर चौ धिया से गये । सरदार ने उसको देखकर कहा
"तिलके । यह अपने महाराजा भट्टिय उपश्रेणिक है। आज यह तेरे अतिथि हैं। इनकी सेवा मन लगा कर करना।"
"अच्छा पिता जी"
यह कह कर तिलकवती फिर अन्दर चली गई और एक लोटे मे जल भर लाते हुए बोली
"महाराज | यह जल है । आप प्रथम मुह-हाथ धोकर मार्ग के श्रम को दूर करे। भोजन भी तैयार ही है। मै अभी महाराज के भोजन का प्रबन्ध करती हूं।"
सरदार महाराज को तिलकवती के महल में एक बिछे हुए बिस्तर पर बिठला कर चला गया। उसके चले जाने के बाद राजा ने तिलकवती के दिये हुए जल से हाथ-पैर धाकर मुह धोया। इसके पश्चात् वे चारपाई पर लेटकर विश्राम करने लगे। उनका शरीर तो बुरी तरह थका हुआ था ही, चारपाई पर लेटने के कुछ क्षणो के बाद ही उनको निद्रा आ गई। तिलकवती ने जो उनको सोते हुए देखा तो भोजन में अन्य भी अनेक प्रकार की वस्तुएँ बनाने लगी। लगभग डेढ घटे में राजा की नीद खुली तो उनके शरीर की थकावट बहुत कुछ दूर हो चुकी थी। तिलकवती उनको जगा हुआ देखकर उनके पास आकर बोली___ "महाराज ! भोजन तैयार है। आप पटरे पर बैठकर चौके मे भोजन करेगे या यही ले आऊँ ?"