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युवराजपद की प्रथम परीक्षा मध्याह्न का समय है। महाराज भट्टिय उपश्रेणिक राजसभा से भोजन के लिये उठ चुके है । आज उनकी पाकशाला में विशेष चहल-पहल दिखलाई दे रही है। रसोइये जल्दी इधर-उधर आ-जा रहे है। उनकी रसोई के कई भाग है, जिनमे कुछ मे तो कई-कई सहस्र व्यक्तियो को एक साथ बिठला कर भोजन कराया जा सकता है । राजकुमारो के भोजन करने का एक दालान पृथक् है । उससे लगा हुआ एक कमरा महाराज तथा महारानियो के भोजन करने के लिये नियत है। महाराज के भोजन पर बैठ जाने के साथ उनके पाच सौ एक राजकुमारो को भी एक साथ ही भोजन के लिये बिठलाया गया। राजकुमारो के सामने सुन्दर सोने के थालो मे खीर का भोजन परोसा गया।
भोजन परोसा जाने पर राजकुमारो ने भोजन आरम्भ किया ही था कि उनको एक अत्यन्त भयकर कुत्ता जोर से गुर्राता हुआ अपनी ओर आता दिखलाई दिया । कुत्ता भेडिये के जितना ऊँचा था। उसने अपने कानो तथा पूछ को खडा किया हुआ था। उसके खुले हुए मुख के अन्दर उसके पैने तथा नुकीले दात उसकी भयकरता को और भी प्रकट कर रहे थे।
राजकुमारो ने जो इस शिकारी कुत्ते को अपनी ओर आते देखा तो वे भय से चीख मार-मार कर वहा से भागने लगे। क्रमश वहा से एक के अतिरिक्त सभी राजकुमार भाग गए। न भागने वाला राजकुमार बिम्बसार था। उसकी आयु चौदह वर्ष की थी। उसका उन्नत ललाट, तेजस्वी ऑखे तथा बड़-बडे भुजदण्ड उसके महापुरुष होने का प्रमाण दे रहे थे। उसने कुत्ते को अपनी ओर आते हुए देखकर सोचा कि कुत्ता सदा ही शिकार से प्रथम भोजन लेना पसन्द करता है । अतएव निश्चय ही वह रसोई मे आकर प्रथम थाली