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युवराजपद की द्वितीय परीक्षा प्रात काल का समय है । पौष मास होने के कारण अभी आकाश मे कुहरा छाया हुआ है। राजकुमारो को रात्रि के समय ही यह आज्ञा दे दी गई थी कि वे प्रात काल होते ही सूर्योदय से पूर्व राजा के सम्मुख उपस्थित हो । अस्तु, अरुणोदय होते ही सब के सब राजकुमार राजा के पास पहुंच गए। उस समय राजा के पास पाच सौ कोरे घडो का ढेर पडा हुआ था। उन्होने राजकुमारो के एकत्रित हो जाने पर उनसे कहा . ___ "राजकुमारो | आप जानते है कि हमारी वृद्धावस्था समीप है और हम अब राज्यकार्य से उपराम होकर वन मे जाकर तपस्या करने का विचार कर रहे है । ऐसे अवसर पर आप लोगो की भिन्न-भिन्न कार्य देने की दृष्टि रो आप लोगो की योग्यता की परीक्षा करना आवश्यक है । अस्तु, आप लोग इस ढेर म से एक-एक कोरा घडा उठा कर लेते जावे और उसे ओस से भर कर यहा शीघू से शीघु ले आवे।"
राजा भट्टिय उपश्रेणिक राजकुमारो को यह आज्ञा देकर राजमहल म चले गए और राजकुमार भी एक-एक घडा उठा कर चलते बने। सब राजकुमारो के चले जाने पर बिम्बसार ने अपने एक सेवक को घडा उठाने की आज्ञा दी । वह उसके ऊपर घड़ा रखवा कर शीघ्र ही नगर के बाहिर एक ऐसे मैदान मे आ गए जहा अन्य कोई राजकुमार नही था।
शेष राजकुमार भी नगर के बाहिर घास के अन्य मैदानो मे ही गए। वह घास के ऊपर से ओस की एक-एक बू द को उठाते और फिर उसको घडे में डालते थे, किन्तु उनके ऐसा करते ही ओस की वह बू द घडे के अन्दर जाकर सूख जाती थी। राजकुमार इसी प्रकार कई घटो तक बराबर ओस की