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श्रेणिक बिम्बसार
लिये तो इतना ही पर्याप्त है कि मैं उसके भावी पुत्र को अपना उत्तराधिकारी. बना कर मगध का राज्य देने की प्रतिज्ञा करता है।"
• "तब तो महाराज मेरी आपत्ति के लिये कोई स्थान ही नही रहता । आप मुझे अनुमति दे कि मै तिलकवती का हाथ इसी क्षण आपके हाथ मे दे दूं।"
“मैं भी यही चाहता हू सरदार।"
यह सुनकर सरदार ने 'तिलकवती' 'तिलकवती' कहकर आवाज दी। तिलकवती के आने पर सरदार ने उससे कहा
'बेटी, ये मगध नरेश इस बात की प्रतिज्ञा करते है कि वे तुझसे विवाह करके तेरे भावी पुत्र को ही अपना उत्तराधिकारी मगध-सम्राट् बनावेगे। अस्तु, अब मेरी प्रतिज्ञा पूरी हो गई । ला, मै तेरा हाथ इनके हाथ मे सौप दू ।" __यह कहकर सरदार तिलकवती का हाथ पकड कर महाराज भट्टिय उपश्रेणिक की ओर को चला । उन दोनो को अपनी ओर आते देखकर महाराज उपश्रेणिक भी चारपाई से उतर कर नीचे खडे हो गए। तब सरदार ने तिलकवती का हाथ उनके हाथ मे देते हुए कहा
"महाराज, मै भीलो का सरदार यमदण्ड अपनी इस पालिता पुत्री तिलकवती को आपको पत्नी-रूप में दान करता हूँ। आप इसके साथ धर्मपूर्वक गृहस्थ का सुख भोगते हुए राज्य करे और उसके भावी पुत्र को अपना उत्तराधिकारी बनावे।" - इस पर महाराज भट्टिय उपश्रेणिक ने तिलकवती का हाथ अपने हाथ में लेकर उत्तर दिया- .
"मै मगध सम्राट् भट्टिय उपश्रेणिक आपकी इस पुत्री तिलकवती को पत्नी-रूप मे ग्रहण करता हूँ और इस बात की शपथपूर्वक प्रतिज्ञा करता हूँ कि इसके गर्भ से होनेवाली सन्तान को ही अपना उत्तराधिकारी बनाकर मगध का राज्य दूंगा।"
इस पर सरदार ने तिलकवती को इन शब्दो मे आशीर्वाद दिया"बेटी, तुम खुश रहो और सदा अपने पति को सुख देती रहो।"
यह कहकर सरदार बाहिर चला गया और तिलकवती राजा के चरणो में गिर पड़ी। उन्होने उसे हाथो से उठाकर छाती से लगा लिया। ६२