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दुर्गम वन में
को हाथ से ही मसल डाला, जो राजा के वस्त्रो में चुभ गए थे। राजा के वस्त्रो के सब काटो को निकाल कर उसने उनको इस प्रकार ऊपर उठा लिया, जिस प्रकार काई बालक खिलौने को उठा कर अपने कन्धे पर रख लेता है। उसने राजा को उठा कर अपने कन्धे पर बिठलाया और गड्ढे से निकाल कर बाहिर खडा किया । बाहिर आने पर राजा बोले
"भाई तुम कौन हो? तुमने तो इस गाढे समय में आकर मेरे प्राणो को बचा लिया।"
"महाराज | मै भीलो की पल्ली का स्वामी उनका सरदार हूँ और आपकी एक तुच्छ प्रजा हूँ । मेरा नाम यमदण्ड है। यदि यह तुच्छ शरीर आपकी कुछ सेवा कर सका तो इसे मै अपना अहोभाग्य समझता हूँ। इस समय दिन छिप रहा है और गिरिव्रज यहा से लगभग दो योजन है। अतएव आप अपनी राजधानी मे आज किसी प्रकार भी नही पहुँच सकते। अस्तु, यदि आपकी अनुमति हो तो मै आज रात आपके आतिथ्य का प्रबन्ध कर दू ।"
"फिर तो ठहरने के अतिरिक्त और कोई उपाय भी नहीं है।"
"तो महाराज, मेरे कन्धे पर बैठ जावे। इस कटकाकीर्ण मार्ग मे आप दल नही चल सकेगे।"
"जैसी तुम्हारी इच्छा" कहकर महाराज उस भील सरदार यमदण्ड के कन्धे पर बैठकर उसके निवास स्थान की ओर चले।