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राजकुमार उसके पास विद्याग्रहण करते थे ।
धीरे-धीरे वर्पकार के त्याग तथा उसकी विद्वत्ता की वैशाली में अच्छी प्रतिष्ठा ने लगी । श्रय उसने लिच्छवियों में किसी से कुछ तथा किसी से कुछ कहकर मे फूट डालनी आरम्भ की। इस घटना के तीन वर्ष बाद वर्षकार ने लिच्छवि, ओ मे ऐसी फूट डाल दी कि दो लिच्छवि राजा एक मार्ग पर ही नही जाते | जब वर्षकार को लिच्छवियों की पारस्परिक फूट का पूर्ण विश्वास हो गया उसने प्रजातशत्रु को जल्दी आक्रमण करने को लिखा । इस पर अजातशत्रु - भेरी बजाकर युद्ध के लिए चल पडा ।
जैन आगम ग्रन्थो मे मगध तथा लिच्छवियों के युद्ध का एक तात्कालिक र यह बतलाया गया है कि अजातशत्रु के चारो छोटे भाई उससे नाराज र वैशाली आकर अपने नाना चेटक के पास रहने लगे । अजातशत्रु ने राजा को लिखा कि वह उनके छोटे भाइयो को गिरफ्तार करके राजगृह भेज किन्तु लिच्छवियो ने शरणागत को धोखा देने में अपना अपमान समझा । श यह है कि मगध तथा लिच्छवियों मे युद्ध प्रारम्भ हो गया । बौद्ध ग्रन्थो मे लिखा है कि जब लिच्छवियो ने प्रजातशत्रु का मुकाबला की रणभेरी बजंकाई तो उस रणभेरी को मुनकर कोई भी नही आया ।
भेरी गंगा तट पर अजातशत्रु का मुकाबला करने के लिये बजवाई गई जब अजातशत्रु वैशाली के द्वार तक आ गया तो दुबारा रणभेरी बजवाई क प्रजातशत्रु को नगर में न घुसने दिया जावे और नगर द्वार बंद करके मुकाबला किया जावे । किन्तु इस बार भी लोग नही आए और श्रजातवुले द्वार से वैशाली में घुस कर उसको नप्ट करके चला गया । किन्तु जैन आगम बौद्ध ग्रन्थो के इस वर्णन से सहमत नही है। उनके अनु शाली के गणपति राजा चेटक ने नव लिच्छवि राजाश्रो तथा नव मल्ल
को लेकर अजातशत्रु के साथ भारी युद्ध किया, जिसमे अजातशत्रु को मिली और वज्जि सघ के साथ-साथ मल्ल जनपद तथा काशी जनपद को साम्राज्य में मिला लिया गया । राजा चेटक ने अपने धेवते के हाथो
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मे वीर गति प्राप्त की । यह घटना श्रजातशत्रु के राज्य के बारहवे वर्ष द्ध के निर्वारण के चार वर्ष बाद ईसा पूर्व ५२० की है । जैन ग्रन्थो मे