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उदायी अत्यन्त महत्त्वाकाक्षी तथा वीर राजा था। पास-पडौस के सभी राजा उसके आए दिन के आक्रमणो से तग थे । यद्यपि उसने अपने जीवन में अनेक युद्ध किये, किन्तु अवन्ति युद्ध के अतिरिक्त उनमे से किसी युद्ध का वर्णन नहीं मिलता। हेमचन्द्राचार्य ने अपने ग्रन्थ स्थविरावली चरित्र मे लिखा हैकि उदायी राजा जैन था और उसकी हत्या एक ऐसे पदच्युत राजकुमार ने सोते समय की थी, जिसने जैन साधु का वेष धारण करके उसके अन्त पुर मे निर्बाध प्रवेश करने का अधिकार प्राप्त कर लिया था।
शिशुनाग वंश का अन्त-उदायी के बाद उसके बेटे अनिरुद्ध अथवा नन्दिवर्द्धन ने ईसापूर्व ४४४ से ईसापूर्व ४०४ तक ४० वर्ष तक राज्य किया। उसने कलिंग ( उडीसा ) को भी जीत लिया था। नन्दिवर्धन के बाद उदायी के पोते मुण्ड अथवा महानन्दी ने लगभग ईसा पूर्व ४०४ से ३६६ ईसा पूर्व तक ३५ वर्ष राज्य किया। महानन्दी के बाद आठ वर्ष तक ३६६ से ३६१ ईसा पूर्व तक उसके दो बेटो ने राज्य किया, जिनका अमिभावक महापद्मनन्द था। उसवे उन दोनो को मार कर मगध मे नन्दवश के शासन की स्थापना की और शिशुनागवश के शासन को समाप्त कर दिया। ___ इस प्रकार शिशुनागवश के मगध-सम्राटो ने अपने समय के सोलह महा-जनपदो मे से अग, काशी, वज्जि, मल्ल, वत्स और अवन्ति इन जनपदो को अपने आधीन कर लिया। महापद्मनन्द ने कोशल, पाञ्चाल, चेदि, शूरसेन, तथा कुरु-इन पाच जनपदो को भी जीत कर मगध साम्राज्य में मिला लिया । उसने गोदावरी प्रदेश मे अश्मक पर भी अधिकार किया। बाद मे चन्द्रगुप्त तथा चाणक्य ने नन्दवश को नष्ट कर मगध मे मौर्यवश की प्रतिष्ठा की और मगध साम्राज्य को भारतीय साम्राज्य का रूप देकर आर्य-पताका को मध्य एशिया तक फैलाया। भारत मे इतना बडा साम्राज्य तबसे लगा कर आज तक भी नही बन पाया । उस समय भारतीय साम्राज्य की सीमा दक्षिण के कुछ थोडे से भाग के अतिरिक्त मध्य एशिया तक फैली हुई थी, जिसमे आजकल के पख्तूनिस्तान, अफगानिस्तान, बलोचिस्तान, चीनी तुर्किस्तान, पूर्वी ईरान तथा सोवियत रूस के मध्य एशिया के कुछ जनतन्त्र सम्मिलित थे। किन्तु इतना निश्चय है कि न्द्रगुप्त मौर्य इस विशाल साम्राज्य का मूल रूप में निर्माता