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भरव-परीक्षा
तब तक अश्वाध्यक्ष ने स्वय आगे बढ़कर महाराज को अभिवादन करके कहा
"महाराज | मै सेवा में उपस्थित हूँ। आपके पधारने के पूर्व ही मैं इस अश्व की अश्वविद्याविशारदो द्वारा परीक्षा करा चुका हूँ। अश्व वास्तव में सर्वगुणसम्पन्न है। लक्षणो की दृष्टि से इसमें कोई त्रुटि नही है। केवल उसकी चाल की परीक्षा करना शेष है।
महाराज-अच्छा, चाल की परीक्षा भी कर ली जावे ।
महाराज के यह कहने पर अश्वाध्यक्ष ने उस घोडे की लगाम पकड कर उसे महाराज के सामने लाकर कहा
"यदि महाराज उचित समझे तो इस पर स्वय सवार हो।" "नही, प्रथम इसकी चाल को तुम देखो, बाद मे हम देखेंगे।"
महाराज के यह कहने पर अश्वाध्यक्ष उछल कर उस घोडे की पीठ पर बैठ गया। उसने उसको उस मैदान में घुमाते हुए कदम, दुलकी तथा सरपट तीनो चालो से चला कर देखा । लगभग दो घडी तक उसको धुमाकर तथा फिर महाराज के सम्मुख लाकर तथा घोडे से उतर कर अश्वाध्यक्ष ने कहा
"महाराज, यह घोडा तो चाल मे भी पास हो गया। क्या आप इस पर इसी समय सवारी करना पसद करेगे ?"
"अवश्य"
यह कहकर महाराज स्वय उस घोडे पर बैठ गए। उन्होने भी उसको उस मैदान में सभी प्रकार से खूब चलाया। महाराज घोडे की चाल से बहुत प्रसन्न हुए और विचित्रवर्मा को अपने पास बुलाकर बोले
"सामन्त | हम तुम्हारे महाराज की इस अश्व-भेट से अत्यत प्रसन्न होकर उसको स्वीकार करते है। तुम कोषाध्यक्ष से इसका मूल्य ले लो।"
विचित्रवर्मा-नही महाराज | यह महाराज को उनकी ओर से भेट है। अस्तु, मै .इसके मूल्य के बदले में केवल महाराज का प्रसाद ही चाहता हूँ।