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पाक्षिकाचार
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ग्रन्थान्ते प्रतिपादयिष्यते। यज्ञोपवीतधारकस्य तस्य पाक्षिकस्य देवोपासनायां शास्त्राणां संग्रहविनयार्जनरक्षणेषु गुरूणां सेवायां च प्रवृत्तिनिरन्तरा भवति। स च सदा सुखी शान्तश्च भवति।।९।। ____ पाक्षिक श्रावक सर्वोत्कृष्ट धर्म की भावना के निमित्तवश सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्रस्वरूप धर्म को आत्मकल्याणकारी समझकर उसे धारण करने की इच्छा से रत्नत्रयस्वरूप धर्म के चिह्न रूप तीन सूतवाले यज्ञोपवीत (जनेऊ) को धारण करता है। उसकी प्रवृत्ति सदा देव की उपासना में, शास्त्रों के संग्रह विनय स्वाध्याय और संरक्षण करने में तथा सद्गुरुओं की सब प्रकार की सेवा करने में ही रहती है। वह सदा शान्तस्वभावी होता है और इसीलिए सुखी रहता है।
भावार्थ-पाक्षिक श्रावक के दो धर्म मुख्य हैं। उनमें प्रथम धर्म है पूजा अर्थात् वीतराग भगवान् की उपासना। पाक्षिक श्रावक संसार के दुःखों को पार करके निर्वाण के सुख का आस्वादन करनेवाले अपने आदर्श प्रभु की पूजा करता है। केवल इनकी ही पूजा नहीं करता है किन्तु उनके उपदेश दिए हुए आत्म-कल्याणकारक वचनों के संग्रहस्वरूप शास्त्रों की रक्षा करता है, उनका संग्रह करता है तथा विनय और श्रद्धापूर्वक उनका पठन-पाठन करता है। वह स्वयं देवोपासना के लिए देव-मन्दिर का निर्माण, देवमूर्ति की स्थापना व प्रतिष्ठा करता है। सरस्वती भण्डार की स्थापना व रक्षा करता है। ज्ञान के आराधक सद्गुरुओं का सत्कार करता है। उनकी आज्ञानुसार चलता है। आहार, औषधि और पुस्तकादि के दान के द्वारा उनकी सेवा करता है। विद्या-प्रचार के लिए योग्य पुरुषों का यथायोग्य विनय और उनकी धनादिक द्वारा सेवा करता है। उनके कष्ट व चिन्ता को दूर कर उन्हें ज्ञान-प्रचार के कार्यों के करने योग्य बनाता है। विद्यालय खोलकर धार्मिक विद्या के अभिलाषी छात्रों को आहारादि की सहायता देता है। सद्धर्मोपदेशक पुस्तकों को जनता के हित के लिए प्रकाशित करता है तथा अपने धन का व्यय करके उन्हें सर्वसाधारण जनता के हाथों तक पहुँचाता है। इस तरह वह देव, शास्त्र और गुरुओं की, साथ ही देवोपासक, शास्त्राराधक और सद्गुरुओं के सेवक पुरुषों की यथायोग्य विनय और सेवा करता है। यह पाक्षिक का पूजा-धर्म है।
दूसरा धर्म है दान-दान अपने स्वार्थ के त्याग को कहते हैं। चाहे वह त्याग धन का हो, आहारादि सामग्री का हो, अपने विषयों का हो या कषायों का हो। जिन वस्तुओं को हमने अपना रखा है, उनका यदि परोपकारवृत्ति से त्याग करना आवश्यक हो तो पाक्षिक श्रावक उनके त्याग के लिए तैयार रहता है। इसका खुलासा यह है कि धर्माराधक
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