________________
नैष्ठिकाचार
तदन्तर शौच क्रिया के पश्चात् दन्तधावन, तैलमर्दन तथा स्नान आदि नित्यक्रिया करके पवित्र वस्त्रों को धारण कर अपने गृह से जल, अक्षत आदि अष्ट द्रव्य लेकर ईर्यापथशुद्धि से गमन कर जिनालय जावे। दूर से ही जिनालय की शिखर तथा कलश और ध्वज को देखकर विचार करे कि मेरा जीवन सफल है, जो मैं परम वीतराग परमात्मा के पवित्र मन्दिर का दर्शन कर रहा हूँ। जिनालय जाते समय मार्ग में कोई दूसरा कार्य नहीं करने लगना चाहिए। निःसही शब्द को उच्चारण करते हुए श्री जिनालय में प्रवेश करे।
मार्ग में चलने से मलीनता को प्राप्त अपने पैरे आदि को पवित्र कर परमपुरुष का दिव्य दर्शन करे। श्री भगवान् का यह दर्शन नाना योनियों में परिभ्रमण करते-करते बड़े कष्ट से प्राप्त हुए इस मानव जन्म में बहुत ही सुयोग से प्राप्त हुआ है। ऐसा विचार करते हुए भक्तिभावपूर्वक अष्ट द्रव्य से श्रीजिन का अभिषेक पूर्वक पूजन करे। पूजन के अनन्तर शान्ति की अभिलाषा से शान्तिपाठ पढ़े, इष्ट प्रार्थना करे, विश्व की शान्ति के लिए तथा देश, राष्ट्र और समाज की शान्ति के लिए प्रार्थना करे । तदनन्तर जिन-वाणी का स्वाध्याय करे। यदि भाग्योदय से परम दिगम्बर गुरु का संयोग मिल जाय तो उन्हें भक्ति पूर्वक प्रणामकर उनके श्रीमुख से अपना कल्याणकारक उपदेश श्रवण करे। अपने प्रमाद से या कषाय से या इन्द्रिय परवशता से कोई अपराध बन गया हो तो श्री गुरु के समीप आलोचना करे तथा उनकी आज्ञानुसार प्रायश्चित्त स्वरूप दण्ड को अङ्गीकार करके अपने जीवन को पवित्र बनावे |
१६३
जिन मन्दिर में अपने अनेक साधर्मी भाई आते हैं, उनको देखकर प्रसन्न वदन होकर उनके साथ धर्म कुशल पूछते हुए अपना कुछ समय धर्मालाप में व्यतीत करे और यह देखे कि इनमें कौन भाई ऐसा है जो किसी प्रकार के कष्ट में है। उनकी यथायोग्य सहायता कर अपने गृह लौटे। गृह में नाना प्रकार के सदुपायों से अपनी आजीविका सम्पादन करे। उसके बाद यथासमय द्वारप्रेक्षण करे। सौभाग्य से यदि कोई उत्तम सत्पात्र का लाभ मिल जाय तो श्रद्धा और भक्तिपूर्वक उन्हें विधिपूर्वक आहार आदि दान देवे। यदि उत्तम पात्र का लाभ न हो तो मध्यम पात्र श्रावकों को या जघन्य पात्र जैनमात्र को दान देवे। उनका भी लाभ न हो तो दयाबुद्धि से दयापात्र जो त्रस्त है उनका आवश्यकतानुकूल आहारिक दान देवे । तदनन्तर अपने घर में अपने आश्रित जनों को तथा पशुओं को आहारादि की व्यवस्था कर मौनपूर्वक भोजन करे।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org