________________
नैष्ठिकाचार
से भी संबंधित कार्य के लिए आवश्यक बात ही करनी चाहिए, चाहे जिस विषय पर पद-पद पर मनमानी चर्चा न करनी चाहिए।
उदाहरणार्थ पूजा करने वाला पूजा करते समय पूजा पढ़ेगा तथा यदि कोई साथ पूजन करने वाला है तो उससे पूजा के लिए आवश्यक वस्तु के सम्बन्ध में या पाठ की शुद्धि या अर्थ के सम्बन्ध में जरूरत के स्थान पर अल्पमात्रा में बोलेगा। अन्य व्यक्तियों से बात करेगा। मौन के बिना की जाने वाली क्रियाओं में चित्त की एकाग्रता नहीं रहती और बिना एकाग्रता के अन्यमनस्क पुरुष के द्वारा किए गए भोजन, मैथुन, मल-मूत्रत्याग, स्नान, वमन, पलायनादि कार्य अत्यन्त शारीरिक हानि को पहुँचाते हैं तथा ऐसे ही अन्यमनस्क के सामायिक व पूजादिक कार्य उद्देश्य को पूरा नहीं करते । इस तरह लौकिक और पारलौकिक हानि को रोकनेवाले होने से मौन को उक्त कार्यों में अवश्य धारण करना चाहिए। १४७ । १४८ ।
१८९
प्रश्नः - किमर्थं जप्यते माला तद्रहस्यं गुरो वद ।
हे गुरुवर! श्रावक लोग माला का जाप किया करते हैं उसका क्या प्रयोजन है, कृपा कर कहें
सर्वदा ।
(अनुष्टुप्) संरम्भसमारम्भारम्भादिभेदाद्धि वाक्कायचित्तचाञ्चल्यात् क्रोधादीनां वशङ्गताः ।। १४९।। अष्टोत्तरशतं पापं कुर्वन्ति प्रत्यहं जनाः । तन्नाशाय जपं भक्त्या कुर्वन्तु स्वात्मचिन्तनम् ।। १५० ।। युग्मम् ।।
संरम्भेत्यादिः - प्रतिदिनं श्रावकः गृहाश्रमे मनसा वाचा कायेन च आरम्भपरिग्रहादिसंबंधिकार्याणि कर्त्तुमुत्सहते । स किल संरम्भः त्रिविधः । तथा च तत्कर्तुं तत्कारणभूतसाधनानां सञ्चयं करोति। स किल त्रिविधः समारम्भः । तदनन्तरं यदा किल कार्यं करोति स किल त्रिविधयोगसंबंधात् त्रिविध आरम्भः। तथा नवविधोऽप्येष क्रोधवशात् मानवशात् मायाकषायवशात् लोभवशाच्च क्रियते अत एष षत्रिंशद्विधः स्यात् । षट्त्रिंशद्विधेऽपि पापे स्वयं कृते अन्येन कारिते तथा अन्यकृते सति तदनुमोदिते च अष्टोत्तरशतसंख्याकं पापं जनाः कुर्वन्ति अतस्तन्नाशाय तत्प्रमाणमणियुक्तां मालामादाय जिननामजपं श्रावका भक्त्या कुर्वन्तु स्वात्मचिन्तनञ्च कुर्वन्तु । १४९।१५०।
किसी भी कार्य के करने का इरादा (विचार) करना संरंभ है। उस कार्य के योग्य साधन सामग्री का संग्रह करना समारंभ है। साधनों की सहायता से विचारित कार्य को
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org