Book Title: Shravak Dharm Pradip
Author(s): Jaganmohanlal Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 318
________________ नैष्ठिकाचार उपयोग में लाए जाने वाले वस्त्र, आसन और शय्या आदि को स्वयं उपयोग में न लावे । ९ – भूलकर भी कभी कामकथा न करे। १० - भोगे हुए भोगों का न चिन्तवन करे और न कथन करे। ११ - साबुन और उबटन आदि का उपयोग न करे । १२ – अत्यन्त कोमल शय्या तथा पलंग आदि पर शयनासन न करे । १३ - नेत्रों में शौक से अंजन लगाना आदि कार्य न करे । १४ – अपने वस्त्र अपने आप धोवे। १ ५ – अपने काम आप करे अन्य से न करावे। १६ – किसी पुरुष के साथ भी एक शय्या पर न सोवे । १७हास्य के वचन, शृंगार के वचन तथा व्यंग्य कथानक आदि न करे । इत्यादि अनेक प्रकार के काम के विकार को बढ़ानेवाले या विकारजन्य कार्य या चेष्टाएँ व्रत को भंग करनेवाली हैं अतः उनका सदा परिहार करे । सामान्यतः ब्रह्मचारी के पाँच भेद हैं १ - ब्रह्मचर्य सहित विद्याभ्यासी उपनय ब्रह्मचारी । २–अदीक्षा ब्रह्मचारी जो ब्रह्मचारी का भेष धरे बिना ब्रह्मचर्यपूर्वक विद्याभ्यास करता है। ३ – क्षुल्लक वेष में ब्रह्मचर्य धर विद्या पढ़े वह अवलंब ब्रह्मचारी है। ४ – मुनि वेष धर ब्रह्मचर्य से रहे और विद्या पढ़े वह गूढ़ ब्रह्मचारी है। ये चारों ब्रह्मचारी बाल्यावस्था में विद्याभ्यासमात्र के लिये व्रती हैं। विद्याभ्यास समाप्त होने पर ये सब विवाह भी करते हैं पर पांचवाँ भेद नैष्ठिक ब्रह्मचारी का है। जो सप्तम प्रतिमा धारण करता है वह नैष्ठिक ब्रह्मचारी है। इस प्रसंग में इसी की चर्चा है अन्य चार प्रकार के ब्रह्मचारियों की नहीं । ब्रह्मचारी के आत्मशक्ति का विकास होता है और विकार दूर हो जाते हैं। परीषह विजय करने के लिये बल प्राप्त होता है। उपसर्ग विजयी होता है। जो परीषह, उपसर्ग या अन्य कष्टों से डिग जाय वह लौकिक दशा में भी काम को करने के अयोग्य होता है। मोक्षमार्ग में चलनेवाले को कष्ट सहिष्णु होना ही चाहिए। अतः सर्वशक्ति की मूलभूत इस ब्रह्मचर्य व्रत प्रतिमा को, जो मुनिव्रत की जड़ है, अंगीकार करनी चाहिये। २०७। प्रश्न :- आरम्भत्यागचिह्नं मे विद्यते किं गुरो वद । हे गुरुदेव! कृपाकर आरम्भत्याग प्रतिमा का स्वरूप मुझे कहें - (इन्द्रवज्जा) वाणिज्यसेवासिमषीकृषिष्वा - रम्भं व्यथादं प्रविहाय सर्वम् । शुद्धस्वभावे रमते सदा य Jain Education International २८७ आरम्भत्यागीति स एव शुद्धः ।। २०८ ।। For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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