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नैष्ठिकाचार
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वह ऐसी सेवा उनसे न करायगा, स्वयं वस्त्र धो लेगा। वस्त्र मलीन हो जानेपर अन्य वस्त्र स्वीकार करेगा। __ग्रामान्तर में जाने हेतु जहाँ तक संभव होगा निर्जीव सवारियों का भी कम उपयोग करेगा। सवारी पर चलना आरंभ ही है। उसके उपयोग से आरंभ जनित दोष लगता है। अतः इस प्रतिमा से ही सवारी के उपयोग का त्याग आरंभ हो जाता है। जहाँ घोर जंगल है, जन निवास नहीं है अथवा बड़ा भारी जलाशय लांघने की जरूरत आ पड़े वहाँ पर निर्जीव सवारी का उपयोग यदि करना ही पड़े तो जो सवारी खास अपने लिए ही किसी को न चलाना पड़े ऐसे रेल, वायुयान, मोटर सर्विस आदि से ही गमनागमन करना अल्पदोषाधायक होगा, ऐसी टीकाकार की समझ है। सामान्यतः सदा ऐसी भी सवारी का उपयोग नहीं करना चाहिए। पूर्व में तृतीय प्रतिमावाले को भी अपने सामायिक की क्रिया को साधने के निमित्त उस काल में सवारी के उपयोग का निषेध किया था, यहाँ
आरंभत्याग के अभिप्राय से सामायिक के बाहर के काल में भी यथासम्भव सवारी के उपयोग न करने की बात कही गई है।
उक्त प्रकार से अपना निर्वाह करता हुआ सर्वारम्भ का त्यागी पुरुष शरीर से भी निर्ममत्व परिणाम होकर अष्टमी प्रतिमा का आराधन करता है।२०८। .
परिग्रहपरित्यागचिह्न मे शान्तये वद।
गुरुदेव! परिग्रह त्याग नामक नवमी प्रतिमा का स्वरूप शान्ति प्राप्ति के हेतु मुझे बताइए
(वसन्ततिलका) अन्यत्र पात्रवसनादिकतः समस्तं
द्रव्यं विहाय भवदं विषमं व्यथादम्। शुद्धेऽचले निजपदे निवसेत् सदा यो
ज्ञेयः परिग्रहविवर्जितधीः कृती सः।।२०९।। अन्यत्रेत्यादिः- परिग्रहत्यागप्रतिमायां पात्रवसनाभ्यां विना अन्यः सर्वः धनधान्यादिकः दशप्रकारको बहिरङ्गो मिथ्यात्वकषायवेदादिकश्च चतुर्दशप्रकारकोऽन्तरङ्गपरिग्रहः परित्यजनीयः यतः परिग्रह एव सदैव भवभ्रमणकारणम्भवति। मिथ्यात्वपरिग्रहेण योऽनादित एव संसारचक्रे बम्भ्रमीति। कषायादिनैव धनधान्यादिसञ्चयं करोति। वेदादिनैव मैथुनसंज्ञामवाप्य नानानर्थानुत्पादयतिं अतो यो नानादुःखप्रदं पारस्परिकविषमताहेतुभूतं परिग्रहं विहायनिष्परिग्रहत्वमालम्बते सः परिग्रहत्यागवती
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