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श्रावकधर्मप्रदीप
धारण करता है। मुनिधर्म का वर्णन ग्रन्थ के पूर्व भाग मुनिधर्मप्रदीप में आचार्य श्री कुन्थुसागर जी ने किया है।२१२।
इस प्रकार आचार्य श्री कुन्थुसागर विरचित श्रावकधर्मप्रदीप व पण्डित जगन्मोहनलाल सिद्धान्तशास्त्री कृत प्रभानामक व्याख्या में
पञ्चम अध्याय समाप्त हुआ।
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