Book Title: Shravak Dharm Pradip
Author(s): Jaganmohanlal Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 304
________________ नैष्ठिकाचार २७३ मार्ग में उतर जाना पड़े, कुछ पैदल यात्रा भी करनी पड़े। यदि इतना त्याग भी मन में न आया हो तो सामायिक प्रतिमा या आगे की प्रतिमाएँ स्वीकार नहीं करनी चाहिए। जिस व्रत को पालन करने की सामर्थ्य न हो उसे अभिमान से, लौकिक कीर्ति की अभिलाषा से अथवा तात्कालिक उन्नत भावना से धारण कर लिया हो तो उसका यथोचित निर्वाह करना ही अपने लिए श्रेयस्कर है। यदि पालन करना शक्य न हो तो जितने व्रतों का निर्दोष पालन हो उतनी ही प्रतिमाएँ रखनी चाहिए। शेष की भावना रखनी चाहिए। ऐसा करने से प्रतिज्ञा भंग होगी, अतः ऐसा उपदेश देना कार्यकारी नहीं है ऐसी आशंका यहाँ हो सकती है। इसका समाधान यह है कि जो कोई व्रती व्रत पालना चाहता है और कोई उसे व्रत त्याग का उपदेश देते हैं तो उपदेशक अवश्य पापी हैं। ऐसा उपदेश 'पापोपदेश होगा, तथा दूसरों को व्रत भ्रष्ट कराने का महान् दोष उपदेष्टा को लगेगा। यहाँ यह स्थिति नहीं है। स्थिति यह है कि भावनावश या दुर्भावनावश किसी ने प्रतिमा ग्रहण कर ली है और वह उसका निर्वाह नहीं कर रहा है तो उसके लिए प्रथम उपदेश तो यही है कि उसे हर प्रकार की शक्ति लगाकर अपने को व्रत के वास्तविक रूप पर ले आना चाहिए। इतनी प्रेरणा के बाद भी यदि कोई व्रत नहीं पालता है, केवल व्रत की खोल ओढ़े हैं, तब उसे यह उपदेश ही दियाजा सकता है कि इस झूठी खोल को ओढ़कर दूसरों को धोखा नदे और अपने को कूप में न ढकेल। इससे जिनामार्ग की अप्रभावना भी होती है। इसलिए यदि कोई अपनी शक्ति और परिणाम विशुद्धि के अनुसार व्रतों का (प्रतिमाओं का) पालन करेगा तो जितना पालन करेगा उतना लाभ मिलेगा। यद्यपि पूर्व व्रत का यह भंग होगा और व्रत भंग का दोष उसे आयगा, पर वह तो इससे पूर्व भी आता था; क्योंकि व्रत तो उससे पलता नहीं था, केवल उसका ढोंग (वष) था। इस मिथ्या वेष से वह भी धोखे में था और दूसरे भाइयों को धोखा देता था। इस मायाचारी से वह बच जायगा। अतः विशेष कहने से क्या? मिथ्या वेष रखकर ऊँचा बताने की अपेक्षा नीचा भेष रखकर शक्ति के अनुसार ऊँचा व्रत पालना उत्तम है। इससे व्यक्ति को तो दोष होगा पर उसे मार्ग को दूषित करने का जो महान् पाप है वह न होगा। रेल, मोटर आदि सवारी में बैठकर सामायिक करना किसी भी प्रकार संभव नहीं है। मात्र समय पर उसकी यादगार है। यदि येन केन प्रकारेण भी सामायिक नहीं कर सकता तो पछताता है। न तो वहाँ एकान्त है, न योग्य क्षेत्र है ओर न स्थिरता है। जहाँ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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