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श्रावकधर्मप्रदीप
सामायिक में शरीर का भी हलन चलन करना निषिद्ध है वहाँ सामयिकी मजे में सवारी पर सवार हो सैकड़ों मील चला जा रहा है। स्त्री पुरुष बच्चों का संघर्ष होता जाता है। सामान का परिग्रह साथ है उसे कोई ले न जाय यह चिन्ता है। टिकट कलेक्टर मांगने आ जाय तो धर्मसंकट है। स्टेशन पास आरहा हो तो जपने या पाठ पढ़ने की अतिशीघ्रता है। ऐसा कोई दोष नहीं जो न लगता हो। दोष लगना तो दूर की बात है वहाँ तो सामायिक व्रत का पालन ही नहीं है। ___जो व्रत प्रतिमाधारी हैं जिन्हें सामायिक सातिचार है वे भी रेल पर सामायिक नहीं कर पाते हैं। उन्हें समय पर केवल स्तुति वन्दना आदि पाठ के द्वारा सामायिक के काल को उत्तम रीति से व्यतीत करना चाहिये और यात्रा की समाप्ति के स्थान पर योग्यतानुसार सामायिक करना चाहिये। यद्यपि ऐसा करने में काल का उल्लंघन होगा और यह अतिचार होगा तथापि प्रसंगतः अतिचार व्रत प्रतिमा में लग सकता है इसीलिए उसके ये व्रत निरतिचार नहीं हो सकते। इन अतिचारों से रहित सामायिक की प्राप्ति के लिए यह तीसरी प्रतिमा है। यहाँ भी यदि जानबूझकर यात्रा को प्रमुख कार्य मानकर व्रत को गौणकर दोष लगाए जायँ तब तीसरी प्रतिमा का वर्णन ही व्यर्थ हो जायगा।
___ सारांश यह है कि विवेक से ही कार्य करना श्रेयस्कर है। अन्यथा हानिप्रद भी है। ऐसा नहीं है कि जितना सधे उतना अच्छा। यदि ऐसा ही है तो उच्च भेष की घोषणा नहीं करनी चाहिए, जो बने सो ही पालन करे। कोई आपत्ति नहीं है। इस प्रकार तीसरी प्रतिमा का स्वरूप है। उसका यथोचित निर्वाह करनेवाला ही उसके वास्तविक लाभ को प्राप्त कर सकता है।२०३।
प्रोषधोपवास नामक शीलव्रत की पूर्णता चतुर्थ प्रोषधोपवास नामक प्रतिमा में होती है, अतः उसका स्वरूप कहते हैं
(वसन्ततिलका) त्यक्त्वा कषायविषयान् गृहकर्मसक्तिं
भुक्तिं प्रमादजननीञ्च चतुर्विधां यः। कुर्वंश्च पर्वदिवसेषु सदोपवासं
नूनं चतुर्थप्रतिमाव्रतपालकः सः।।२०४।। त्यक्त्वेत्यादिः- सप्तशीलेषु शिक्षाव्रतेषु वा मुनिव्रतशिक्षाराधनार्थेषु प्रोषधोपवासव्रतस्य निरूपणं कृतम् । यत्प्राक् प्रोषधोपवासः व्रतप्रतिमायां शीलरूप आसीत् स एव चतुर्थप्रतिमायां
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