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नैष्ठिकाचार
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प्रश्न:-कार्यो वितानबन्धेऽपि कुत्र कुत्र गुरो वद हे गुरुवर्य! श्रावक अपने घर में चँदोवा कहाँ कहाँ बाँध, कृपया कहिये
(अनुष्टुप) पेषणप्रभृतिस्थाने श्रावकैर्धार्मिकैः सदा । वितानस्य प्रबन्धोऽपि कर्तव्यो जीवरक्षकः ।।१४६।।
पेषणेत्यादि:- जीवरक्षार्थ अन्नादिशुद्ध्यर्थञ्च पेषणप्रभृतिस्थाने पेषिण्यादीनामुपरि एकादशस्थानेषु वस्त्रादिना निर्मितस्य मण्डपस्य प्रबन्धो धर्मज्ञैः श्रावकैः स्वेच्छया कर्तव्यः। यत्रान्नादिपेषणं क्रियते तदुपरि, यत्र कुट्टनमन्नादीनां क्रियते तत्र, यत्र महानसमस्ति तत्र, भोजनस्थाने, पानीयस्थाने, शयनस्थाने, स्वाध्यायशालायां, सामायिकस्थाने, पूजनगृहे, आपणे, तथा यत्र अग्न्यादिसंस्थापनं क्रियते तत्रापि उपरि मण्डपो विधेयः। विताननिबन्धनेन गृहस्यो_भागे आच्छादितैः खर्परादिभिः वंशादिभिश्च जीवानां पतनं न स्यात्, यदि स्यात् तर्हि वितानस्योपर्येव नान्नादौ पूजनांदिवस्तुनि भूमौ शरीरे वा। तत्र पतने तेषां घात एव स्यात् । अतो दयापरैस्तत्र तत्र वितानस्य प्रबन्धोऽवश्यमेव कार्यः।१४६।
दयावान् श्रावकों का कर्तव्य है कि अपने गृह में चक्की आदि ग्यारह स्थानों के ऊपर चँदोवाजो कि अच्छे वस्त्र आदि का बनाया गया हो तथा छिद्ररहित हो बाँधे। अर्थात् चक्की के ऊपर, अन्न के कूटने के स्थान पर, रसोई करने के स्थान पर, पानी रखने के स्थान पर, भोजन करने के स्थान, पर, दुकान के स्थान पर, शयन के स्थान पर, स्वाध्यायशाला में, सामायिक व उपवास करने के स्थान में, पूजा और यज्ञ के स्थान में तथा अन्यत्र जहाँ कहीं भी अग्नि जलाने या रखने का काम पड़े उन सब स्थानों पर चँदोवा बाँधना चाहिये। मण्डप बन्धन से गृह के ऊपर भाग के छप्पर से व बांसों के सड़ने आदि से जीव जन्तु गिरने लगते हैं वे भूमि में, अन्नादि वस्तु में, पूजनादि सामग्री में, जल में, तथा आग में इत्यादि स्थानों में न गिर कर मण्डप में ही रह जायगे और तात्कालिक अवश्यंभावी विनाश से बच जायगे। अन्नादि की शुद्धि भी रहेगी।
जिन स्थानों में ऊपर छप्पर नहीं है वहाँ भी मकरी के जाल आदि के निमित्त से जीव बाधा सम्भव हैं, अतः मण्डप बन्धन करना चाहिये। पक्की छतों के या अन्य प्रकार के सिमेंट आदि से बने हुए स्थानों में मण्डप की क्या अवश्यकता है ऐसा प्रश्न हो सकता है? उत्तर यह है कि विवेकी मनुष्य तो ऐसे स्थानों की स्वच्छता रखकर जीवरक्षा कर सकता है। मण्डप बन्धन के उद्देश्य की पूर्ति तो इससे हो सकती है,
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