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नैष्ठिकाचार
भी नक्षत्रों के उदयास्त से ज्ञान कर लेते हैं। अतः घड़ी का आदान-प्रदान संयम साधक न होने से उपकरण दान में सम्मिलित नहीं किया जा सकता। हाँ, चातुर्मास आदि समय में वर्षा योग के कारण मोघाच्छन्न सूर्य होने से अथवा दैनिक कार्यक्रम से विभिन्न धर्माराधनाओं के हेतु समय की प्रतीति में बाधा होती हो तो श्रावक उस स्थान पर स्थानप्रबन्ध की तरह यदि घड़ी लगा दे तो उससे समय देखने में साधु को कुछ बाधा नहीं, पर उस वस्तु को अपने साथ हमेशा रखा नहीं जा सकता।
वस्त्र और बर्तन की तरह वैटरी, फाउन्टेन पेन, ग्रामोफोन के रिकार्ड, शब्दग्राही ( रिकार्ड बनानेवाली) मशीनें, वस्त्र की कुटीरें, चटाइयाँ, और बैठने के काष्ठासन आदि भी साधु अपने साथ नहीं रख सकता। ये सब परिग्रह में सम्मिलित हैं, अतः इनका दान भी उपकरण दान नहीं हैं। साधु के आने पर श्रावक इन चीजों को अर्थात् बैठने को उच्चासन हेतु काष्ठासन, वेत्रासन तथा तृणासन दे सकता है। उनके लिए सामान्य कुटी और स्थान के अभाव में वस्त्र की कुटी बनाकर उसमें ठहरने को स्थान दे सकता है। रिकार्डिंग मशीन द्वारा उनके भाषण को रिकार्ड कर सकता है। ये सब साधन गृहस्थ द्वारा यथासमय उपयोग में लाए जा सकते हैं। पर साधु इन साधनों का उपयोग स्वीकार करके भी इन साधनों को स्वीकार नहीं कर सकता। इनका स्वायत्तीकरण परिग्रह ही है। उक्त विवेचन से यह स्पष्ट हुआ कि परिग्रह का दान साधु को नहीं दिया जा सकता। किन्तु मात्र ज्ञान और संयम के साधनभूत सुनिश्चित पदार्थों का दान ही जिनकी चर्चा ऊपर आ गई है, उपकरण दान के नाम से किया जा सकता है।
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आवासदान के स्थान में अभयदान शब्द का भी उपयोग ग्रन्थान्तरों में किया गया है। जिसका तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार स्थान का दान उनकी रक्षा की दृष्टि से है वैसे ही अन्य अवसरों पर आवश्यकता होने पर उनकी हर प्रकार रक्षा करना, रुग्णादि अवस्था में सेवा करना अभयदान है। आर्यिकाओं को उक्त दानों के सिवाय एक साड़ी का दान भी दिया जा सकता है। श्रावक दान के लिए पात्र माना गया है अतः दान के प्रकरण में किए गए भेदों में उसके योग्य भी पदार्थों की गणना की जा सकती है जो उसके व्रतों में सहायता दें। उसे निराकुल बना सकें, किन्तु उसके परिगृहीत व्रत के लिए बाधक न हों। जैसे क्षुल्लकों के लिए लँगोटी और खण्डवस्त्र । ऐलकों के लिए मात्र लँगोटी वस्त्रों में दी जा सकती है। क्षुल्लक एक भोजन पात्र भी साथ रख सकते हैं, अतः उन्हें एक भोजनपात्र भी दान में दिया जा सकता है। शेष प्रतिमाधारी श्रावकों तथा अवती
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