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श्रावकधर्मप्रदीप
अतिचार है, अतः इस व्याख्या के रहते हुए पद्मपत्र को सचित्त न मानना आगम विरुद्ध है।
यदि वृक्ष में संलग्न पत्र को ही सचित्त माना जायगा तो उक्त व्याख्या के अनुसार ये दोनों अतिचार संभव ही नहीं हैं। कारण यह कि यह सर्व विदित है कि कमल तालाब में उत्पन्न होता है, अतः सरोवर के जल के मध्य में रहने वाले संलग्न पत्र ही सचित्त पत्र होंगे और उस स्थान में न तो श्रावक ही आहार देने खड़ा होगा और न कोई मुनि सरोवर के जल के मध्य में खड़े होकर आहार ग्रहण करने जाँयगे। उक्त सचित्त की व्याख्या के अनुसार तो सचित्त पद्मपत्र में रखे या ढके हुए आहार संबन्धी अतिचार तब ही संभव होंगे जब श्रावक और मुनि सरोवर के जल में घुसकर पद्मपत्र के पास जाँय और वहाँ वृक्ष लग्न पत्र में ही आहार रखा जाय या ऐसी ही हालत में उससे ढका जाय। दोनों बातें संगत नहीं हैं। इससे प्रतीत होता है कि अपने भोजन गृह में लाए हुए कमल या केले आदि के पत्र में यदि आहार रखा जाय तो उसे सचित्त निक्षेपाहार मानना उक्त दोनों महान् आचार्यों को इष्ट है, इसलिए ही उक्त व्याख्या उन्होंने की है।
उक्त मान्यता का संक्षेप में विचार कर हम आगे बढ़ेंगे। इस मान्यता को लोक परम्परा का भी अनुमोदन प्राप्त नहीं है। जैन गृहस्थ न केवल दिगम्बर किन्तु श्वेतांबर परम्परा में भी अष्टमी, चतुर्दशी; दशलक्षणी पर्व, अष्टाह्निका पर्व अथवा अन्य व्रत के दिनों में हरी वनस्पति शाक आदि का भोजन में उपयोग नहीं करते। यदि वह अचित्त द्रव्य माना गया होगा तो इस प्रकार की परम्परा न होती। हरी शाक, फल आदि को सचित्त न मानने वाले कुछ विद्वानों और साधुओं द्वारा आजकल गृहस्थों को यह समझाया जाता है कि तुम्हारा शाकाहार का व्रत के दिनों में त्याग मिथ्यात्ववर्धक है, आगम विरूद्ध है। अतः व्रत में भी शाकाहार किया करो, ऐसी विपरीत प्रवृत्ति को प्रोत्साहन दिया जाता है, किन्तु युक्ति, तर्क और आगम प्रमाण के सिवाय परम्परा भी वस्तु के निर्णय में प्रमाणभूत होती है। उस परम्परा में शाक आदि सचित्त ही माने गए हैं और इसी से गृहस्थ व्रत के दिनों में उनका उपयोग नहीं करता।
कोई-कोई साधु ने तो ऐसा भी हठ किया है कि जो गृहस्थ अष्टमी आदि पर्व में हरित शाकाहार को सचित्त मानकर न खायगा उसके हाथ से आहार ग्रहण नहीं करेंगे। साधु की इस अनुचित प्रतिज्ञा से श्रावक धर्म संकट में पड़ गए हैं। वे यह सोचने लगे कि यद्यपि पर्व में हरित खाने में आगम विरुद्धता है तथापि न खाने से साधु के आहार
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