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नैष्ठिकाचार
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मिथ्याशास्त्रों का पठन-पाठन तथा उपदेश करना मिथ्योपदेश नामक प्रथम अतिचार है। प्रमाद के कारण यह सम्भव है। आर्थिक लाभ और आजीविका के निर्वाह के लिए जिन प्रतिपादित मार्ग के विरोधक असन्मार्ग के प्रतिपादक मिथ्यात्वपोषक ग्रन्थों का पढ़ना, पढ़ाना या समाज में उनका प्रचार करना तथा यह समझना कि मैं केवल अपनी आजीविका के लिए इस मार्ग का अवलम्बन कर रहा हूँ, मेरी श्रद्धा तो जिन मार्ग पर ही है, सत्यव्रती के लिए व्रतभङ्ग कारक है। ___यही कार्य यदि जिनमार्ग में अश्रद्धा तथा मिथ्यामार्ग में श्रद्धा होने के कारण किया जाय तो वह सम्यक्त्व का विघातक होने से अनन्त निगोद का कारक महान् असत्य है। उसके होने पर वह व्यक्ति महान् अव्रती तथा मिथ्यादृष्टि होगा। केवल मिथ्या को मिथ्या मानकर भी वह उसे सच्चा माननेवाले तत्संप्रदायके व्यक्तियों के लिए केवल स्वजीविका के लिए उपदेश करता है अथवा लिखता है, मिथ्यात्वपोषक ग्रन्थों की टीकादि लिखकर आजीविका करता है तो ऐसा करनेवाला वह सदोषी व्रती है। व्रती को ऐसी आजीविका न करनी चाहिए। यह पहला अतिचार है।
दूसरा अतिचार है रहस्यभेद। अर्थात् कोई व्यक्ति अपना कार्य साधना चाहते हैं जो आप पर या अन्य किसी पर प्रकट नहीं किया जा सकता। तथापि उनकी चेष्टा से उनके अभिप्राय को समझ कर उसे जनता में प्रकट कर उन्हें नीचा दिखाना व उनको हानि पहुँचाना रहस्यभेद है। यह उसी दशा में अतिचार है जब कि हम उस अभिप्राय का भेदन केवल उनकी हानि के लिए करते या कौतुकवश करते हैं।
कूटलेख-किसी विषय को प्रतिपादन करने के लिए ऐसी शब्दावली या वाक्यावली का प्रयोग करना जिससे पढ़ने वाला सहसा उसके इस अभिप्राय को जो वह निज स्वार्थ वश निकालना चाहता है न समझ सके किन्तु दूसरा ही अर्थ समझे। रुपया पैसा आदि केव सुवर्ण भूमि आदि के सम्बन्ध में ऐसे स्टांप या अन्य प्रकार के कपटपूर्ण लेख लिखाना जिससे दूसरे प्रकार के निजस्वार्थसाधक भी अर्थ निकाले जा सकें ऐसे परवञ्चक शब्द पूर्ण लेख कूटलेख हैं। इन लेखों को लिखने या लिखाने वाला प्रतिवादी की सरलता का अनुचित लाभ उठाना चाहता है। वह अवसर पड़ने पर अपने लेख का भिन्नार्थ उसे समझा कर उसे अपने स्वार्थ साधन के लिए मजबूर कर देता है। एक उदाहरण द्वारा यह विषय स्पष्ट हो जायगा-मान लीजिए कि एक मनुष्य एकज्योतिषी के पास गया और यह बोला कि मेरी पुत्रवधूगर्भिणी है। उसके पुत्र होगा या पुत्री? यदि हमारे प्रश्न का सही समाधन
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