Book Title: Shravak Dharm Pradip
Author(s): Jaganmohanlal Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 274
________________ नैष्ठिकाचार २४३ प्रश्न:-भोगोपभोगव्रतस्य किं चिह्नमत्ययाश्च के? हे गुरुदेव! भोगोपभोग व्रत का क्या स्वरूप है और उसके अतिचार कौन कौन हैं, कृपया मुझे बताइए (वसन्ततिलका) मोहादिकमरिपुसंघविनाशनार्थं कृत्वा प्रमाणमिति वस्त्रधनादिकानाम् । यःप्रत्यहं निजपदे निवसेत्कृतार्थी भोगोपभोगविरतः स भवेव्रतेशः।।१९८।। मोहेत्यादिः- परिग्रहप्रमाणव्रते धनधान्यादिवस्तुषु प्रमाणं कृतमासीत् । तथापि तत्रापि मोहनिवारणार्थं सकृद् भोगयोग्यानां भोगपदार्थानां भोजनगंधादीनां असकृद् भोगयोग्यानामुपभोगपदार्थानां वस्त्रादीनाञ्च नियतकालपर्यन्तं नियमरूपं अनियतकालपर्यन्तं यावज्जीवं यमरूपं वा यत्परिमाणं क्रियते तदेव भोगोपभोगपरिमाणव्रतमिति व्रतमिदमखिलेषु व्रतेष्वपि ईशवत् श्रेष्ठमित्यर्थः । अतः सर्वेष्वपि परपदार्थेषु ममत्वपरणतिं विहाय स्वात्मस्वरूपे निवासः करणीयः। इदमेवोद्देश्य सर्वेषामपिव्रतानाम् । स भोगोपभोगविरतस्तु भोगोपभोगप्रमाणव्रते नियतांशेषु भोगानामुपयोगानाञ्च परित्यागात् शेषांशेषु च परिगृहीतेष्वपि अग्राह्यबुद्ध्युत्पादकत्वात् सन्निहितो वर्तते। अतः स सर्वेष्वपि व्रतिषु ईशत्वं प्राप्नोति।१९८। पञ्चाणुव्रतों में पाँचवाँ परिग्रह परिमाण व्रत है। इस व्रत में श्रावक ने गृहीत परिग्रहों को न्यून करने के लिए धन, धान्य, वस्तु, गृह, सुवर्ण, चाँदी आदि दसप्रकार के पदार्थों को जो दैनिक उपयोग के होने से परिगृहीत हैं घटाया था। अल्प परिग्रह से ही अपना व्यावहारिक कार्य चल सके ऐसा विचार कर प्रमाण नियत किया था। इस भोगोपभोग प्रमाण व्रत द्वारा उनमें भी क्षीणता लाने का प्रयत्न किया जा रहा है। जो पदार्थ दैनिक उपयोग में आते हैं पर जो एक बार काम में आकर नष्ट हो जाते हैं उनका दूसरी बार उपयोग नहीं हो सकता ऐसे पदार्थ भोग संज्ञा को प्राप्त होते हैं। जैसे भोजन के सब पदार्थ, शरीर पर लगने के तेल, उपटन, सुगंधित अन्य पदार्थ, नस्य, अञ्जन, गीत, नृत्य आदि। जो भोजन उदरस्थ किया गया है वह लौटाकर पुनः नहीं किया जा सकता। जो तेल फुलेल शरीर पर लगा दिया गया है वह एक बार में ही समाप्त हो गया। दूसरी बार उपयोग की आवश्यकता होने पर दूसरा भोजन पदार्थ या दूसरा तेल उपयोग में लाना पड़ेगा। व्यक्तिगत रीति पर इन पदार्थों का उपयोग इसी प्रकार किया जा सकता है। यही बात नस्य और अञ्जन की है। संगीत के जो शब्द तथा नृत्य के जो हाव भाव एक बार सामने आए वे नष्ट हो गए, दूसरी बार दूसरे शब्दों का Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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