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नैष्ठिकाचार
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ज्ञान, संयम, दर्शन, लेश्या, भव्य, सम्यक्त्व, संज्ञा, आहारक ये १४ मार्गणा हैं। इनके भेद प्रभेदों में भी जीवों की स्थिति है।
उक्त प्रकार जीवों की व्यवस्था जानकर तथा कहाँ-कहाँ किन जीवों की उत्पत्ति होती है इसे भी आगम से ज्ञात कर जो जीव यथाशक्ति स्थावरों की प्रतिसमय रक्षा करते हुए त्रसहिंसा को संकल्प से नहीं करता वह जीवन में शान्ति और सुख प्रदान करनेवाले पवित्र अहिंसाव्रत का पालन करनेवाला है। १६५।१६६।
अथाहिंसावतातिचाराः
____ (वसन्ततिलका) आहारपानपरिरोधननिन्द्यकृत्यं
बन्धो वधश्च गुरुभारकरोपणादि। छेदो न धर्मरसिकैर्विषयादिवृद्ध्यै
कार्यः सदा भुवि यतः स्वपदे निवासः।।१६७।। आहारेत्यादिः- आहारपानपरिरोधननिन्द्यकृत्यं स्वाधीनानां नरतिरथामाहारपानपरिरोधनं समयमुल्लंध्य भोजनादिदानं अहिंसाव्रतस्य अतिचारः स्यात् । तेषां प्राणपीडाकारकत्वात् तत्कार्य निन्द्यमेव। बन्धो रज्ज्वादिना-श्रृंखलया-वचनेन-यंत्रमंत्रादिना-अन्येन केनापि प्रकारेण वा नियतस्थाने नियमितं बन्धनकरणं द्वितीयोऽतिचारः। वधः कषायावेशतः प्राणिनां वेत्रादिभिः ताडनं तृतीयोऽतिचारोऽस्ति। गुरुभारकरोपणादि न्यायातिक्रमेण तत्सामर्थ्यादधिकभारस्य तदुपरि रोपणं सेवकादिभिरपि निरवच्छिन्नरूपेण रात्रिदिवं सेवाग्रहणादिकमपि अतिभारारोपणं नाम अहिंसाव्रतस्य चतुर्थोऽतिचारः स्यात् । तेषां कर्णनासिकादिच्छेदनेन स्ववशीकरणं पञ्चमोऽतिचारः स्यात् । सर्वाण्यपि उल्लिखितकार्याणि स्वविषयरागात् अन्यस्योपरि क्रोधाद्यावेशात् वा क्रियमाणानि तत्सम्बन्धप्राप्तानां नराणां स्त्रीणां बालानां तिरश्चां वा अतिदुःखाधायकानि भवन्ति अतस्तानि अहिंसाव्रताराधकस्य तव्रतस्य छिद्ररूपाण्येव।१६७।
अपने अधीन रहनेवाले पशु, पक्षी व मनुष्यादिकों को यथासमय भोजन व पान प्रदान करना अहिंसाव्रती के लिए आवश्यक कर्तव्य है। समय टाल करके उनको भोजन-पान देना उन्हें कष्ट पहुंचाना है जो कि उसके व्रत के लिए अनुचित है। तथापि यदि कोई व्रती इसका ध्यान न रखे प्रमाद से अथवा अपने कार्य की अधिकता से भूल जाय और समय का उल्लंघन कर उन्हें भोजन-पान दे तो वह अहिंसाव्रती के लिये अतिचार है।
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