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श्रावकधर्मप्रदीप ____ अपने आर्थिक वैषयिक प्रयोजन के कारण मनुष्यों या पशुओं को अथवा मनोरंजन के लिए शुक, सारिका आदि को पिंजड़े आदि में अथवा रस्सी, सांकल, यंत्र, मंत्र द्वारा या केवल वचनों के द्वारा किसी नियत स्थान में रोककर रखना व यथेच्छ गमनागमन न करने देना यह परिरोधन नामक द्वितीय अतिचार है। ___अपने वश में रखने के लिए यदि पशु पक्षी के लिए बाँधने की आवश्यकता अनुभव में आवे और वे सहज में बंधनादि तोड़कर भाग जा सकते हैं ऐसी आशंका हो तो लोग उनके नाक-कान छेद देते हैं और उनमें रस्सी डाल कर बांध देते हैं ताकि भागने की चेष्टा करने पर उनके उन मुलायम अंगों को पीड़ा हो और उस पीड़ा को न सह सकने के कारण वे बंधन तुड़ा कर न भाग सकें। यह छेदन नाम का तृतीय अतिचार है।
अपने उक्त प्रयोजनों की सिद्धि के लिए मनुष्यों, पशुओं अथवा पक्षियों को वेत-दण्ड आदि के द्वारा मारना या ताड़ना देना वध नामक चतुर्थ अतिचार है। . ___अतिभारारोपण यह अहिंसा व्रत का पांचवाँ अतिचार है। भारवाही लोग बैलों पर, गाड़ियों में, घोड़ों पर, तांगा, टमटम आदि में, गधों पर तथा ऊँटों पर उनकी सामर्थ्य से अधिक बोझ लाद कर उन्हें कष्ट देकर अपना अल्प प्रयोजन साधते हैं। यह अन्याय कार्य इस व्रत का पांचवाँ अतिचार है।
नगर में या ग्राम में समर्थ लोग अपने कार्यों को सम्पन्न करने के लिए नौकर रखते हैं, मुनीम रखते हैं अथवा क्लर्क रखते हैं। इन कार्यों की सेवा का भार उनपर इतना
अधिक रख देते हैं कि जिसे वे वहन नहीं कर पाते या बड़े कष्ट से वहन कर पाते हैं। दिन में रात्रि में १० घण्टे, १२ घण्टे, १४ और १६ घण्टे भी काम लिया जाता है। दो आदमी के करने योग्य कार्य का भार एक ही आदमी से लिया जाता है। यह सब अतिभारारोपण अतिचार ही है।
इन सम्पूर्ण कामों को लोग अपने वैषयिक साधन के लिए अथवा आर्थिक प्रयोजन को लक्ष्य में रखकर लोभ के आवेश में करते हैं कार्यों की साधना के लिए क्रोधादि कषायों का भी अवलंबन करते हैं। किन्तु ये सब हिंसा आपादक कार्य हैं। जब तक अहिंसाव्रती इन कार्यों को एक हद तक करता है और अपना व्रत भंग न हो जाय इसका ध्यान रखता है तबतक उक्त कार्य अतिचार है। किन्तु व्रतरक्षा की हार्दिक चिन्ता के अभाव में दुष्टता .या तीव्र लोभवश किए गये ये कार्य अनाचार संज्ञा को भी प्राप्त हो जाते हैं, अतः इनसे बचना ही श्रेयस्कर है।१६७।
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