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नैष्ठिकाचार
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हैं और उनका मरण भी अवश्यंभावी है। अतएव ऊपर के ४ कारणों से रहित शुद्ध भी पदार्थ अहितकर, अपथ्य और रोगोत्पादक होने के कारण हिंसा का हेतु है अतः अभक्ष्य है।
जिन २२ अभक्ष्यों को ग्रन्थान्तरों में वर्णित किया है वे. सब इन पाँच कारणों में से किसी कारण से ही अभक्ष्य हैं। जो पदार्थ अपने सहज परिणमन से भ्रष्ट होकर सड़ने लगता है वह स्वाद से विचलित हो जाता है। ऐसे स्वाद चलित पदार्थ में असंख्य त्रस राशि उत्पन्न हो जाती है, अतः वह कदापि भक्ष्य नहीं हो सकता। भले ही वह उक्त पाँचों कारणों को बचाकर अत्यन्त शुद्ध रीति से ही क्यों न निष्पन्न किया गया हो। विष आदि पदार्थ भी इसी तरह हेय हैं जब कि मारक हों। अर्थात् उनसे जीवन रक्षा न होकर जीवन नाश हो। जो उक्त पाँच अभक्ष्य के कारणों से रहित हैं और मारक शक्ति से रहित होकर जीवनप्रदायिनी शक्ति को प्राप्त होकर औषधि रूप हो गए हैं वे अभक्ष्य नहीं हो सकते हैं।
जो पदार्थ अशोधित हों वे भक्ष्य होने पर भी उस अवस्था में अभक्ष्य हैं; कारण सचित्तत्व होने की अर्थात् त्रस सहित होने की उनमें सम्भावना है। बेर का फल, मकोय आदि छोटे-छोटे फल जो फोड़कर नहीं खाए जा सकते या ऐसी वनस्पति या साग जिसे फोड़कर शोध नहीं सकते वे भी अभक्ष्य की श्रेणी में गर्भित हैं। जो पदार्थ देखने में जीव जन्तु के आकार के हैं, अर्थात् त्रस जीव के विशिष्ट आकार के हैं, जिनके खाने में खानेवाले के चित्त में ऐसी ग्लानि पैदा हो जाती है कि इसका खाना अमुक प्राणी को खाने जैसा लगता है या मांस समान दीखता है। इस प्रकार उसमें यदि अभक्ष्य का संकल्प आ जाय तो वह भी पदार्थ अभक्ष्य है। ___अभक्ष्य भक्षण से बुद्धि भ्रष्ट होती है। दयाधर्म नष्ट हो जाता है। क्रूरता उत्पन्न हो जाती है। लोभादि कषायों का प्राबल्य हो जाता है। अतः शान्ति के इच्छुक धर्मात्माओं को अभक्ष्य के भक्षण का त्याग करना चाहिए। इस तरह श्रावक के आठ मूलगुण बताए गए हैं।१०५।१०६।
मूलव्रतातिचारवर्णनम् प्रश्नः-वदातिचारकाः पञ्चौदुम्बरस्य कति प्रभो।
हे प्रभो! पाँच उदुम्बर फल त्याग रूप व्रत को पालने वाला जिस प्रकार से अपने व्रत को निर्दोष पालन कर सके, इसके लिए उस व्रत के अतिचारों का वर्णन करिए।
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